दान विधा- घनाक्षरी

होते खुश दीना नाथ
       रहो सदा साथ-साथ
            करो नित खुले हाथ
             दान ही महान है।


कभी नहीं भेद करें
        यही सदा वेद कहे
             नीर नहीं छेद करें
            दान ही जहान है।


कर्म नेक दान होये
      आन वान शान होये
              चहुँ ओर गान होये
            दान ही उत्थान है।


कहें सारे धर्म ग्रंथ
       ऋषि मुनि साधु संत
              होते नहीं कभी अंत
             दान ही प्रधान है।


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

वर-वधू को आशीर्वाद (गीत)