चिंता और चिंतन


 


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🌷सांसारिक व्यवहार में हम चिंता और चिंतन .दोनों शब्दों को बार-बार सुनते हैं. सरसरी नजर से देखने पर  इन दोनों शब्दों का अर्थ एक जैसा ही नजर आता है. परंतु विचारवान लोगों ने , इन्हें एकदम उल्टा बता दिया...
कहा भी है. कि चिंता व्यक्ति को जिंदा ही जला 🔥 देती है... जबकि चिंतन 🤔 करने हेतु बार-बार उपदेश दिया जाता है। आइए इनका भेद समझने का प्रयास करते हैं..


*चिंतन 🤔*


🌷सामने उपस्थित परिस्थिति में .जब हम अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर..श्रेष्ठतर से श्रेष्ठतम. क्या प्रयत्न एवं पुरुषार्थ कर सकते हैं. इस पर गहन विचार विमर्श करना चिंतन कहलाता है.. जो प्रायः कठिन से कठिन परिस्थिति में भी व्यक्ति को उबार लेता है.....


*चिंता*


🌷 जब विकट परिस्थिति सामने आती है तो हम पुरुषार्थ को छोड़कर.दुष्परिणाम का विचार करते हुए. अपनी स्थिति का रोना रोते रहते हैं .अथवा पुरुषार्थ करते हुए भी परिणाम के प्रति आशंकित और भयभीत रहते हैं. जबकि परिणाम हमारे हाथ में होता ही नहीं हमारे हाथ में केवल पुरुषार्थ ही है..।   इस  नकारात्मक सोच का नाम ही चिंता है जो व्यक्ति को कभी सुखी नहीं होने देती।


🌸सदा चिंतन के लिए प्रयत्नशील रहें ...एवं चिंता को पूरी तरह त्याग दें...


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