छोटेपन का अभिमान मत कर

छोटेपन का अभिमान मत कर



      परमात्मा तो महान् है परन्तु उसका मार्ग (प्रवेश द्वार) बड़ा छोटा और लघु है। इस मार्ग से वही प्रवेश कर सकता है, जो अपने आप को छोटा जानता है। जैसे तंग और छोटो मार्ग से बड़ा और भारी आदमी प्रविष्ट नहीं हो सकता । बच्चा जो स्वयं छोटा है पतला और जिसके पांव भी छोटी हैं-सरलता से प्रविष्ट हो सकता है। ऐसे ही वह भक्त मनुष्य जो स्वयं को छोटा बना लेता है-उससे यह मार्ग सरलता से पार किया जाता है । छोटा बन जाने या स्वयं को छोटा मानने में जो अभिमान होता है वह स्वयं नष्ट हो जाता है । जब मान-अपमान का विचार न रहा तो हानि-लाभ भी न रहा । एक धनी जब हार जाए, फेल हो जाए, तो वह छोटा बन जाने पर भी मान का त्याग नहीं करता। वह इस कारण शोक नहीं करता कि उसके पास धन न रहा । अपितु अधिक शोक उसे इसलिए होता है कि लोग उसे दृष्टि से गिरा देंगे। उसे सभी धनी लोग छोटा आदमी समझने लग जायेंगे। यही मान-अपमान की चिन्ता उसे दुःखी बनाए रखती है । जितने भी प्रभु-भक्त और इस मार्ग पर चलनेवाले हुए हैं-सबने अपने आपको छोटा कहा है।।


    २. लघु बन के देख


       परमात्मा की समीपता उसकी आराधना और प्रार्थना है। बड़े से बड़ा धनवान्, बलवान्, विद्वान् भी जब प्रार्थना करता है तो (चाहे दिल से न करे) मुख से तो उसके यही निकलता है-कि "प्रभु ! आप महान् हो । मैं निर्धन, अनपढ़, निराश्रय, निर्बल ही हूं।" यह चिह्न है कि मनुष्य दिल से लघु बनकर पहुंच सकता हैजब तक अपने आपको किसी भी प्रकार से बड़ा माने हुए है-इस मार्ग से चल (गुजर) नहीं सकता। एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकता।


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