छठ पूजा और भेड़ चाल

छठपूजा- एक और अन्धविश्वासव व भेडचाल



छठ पूजा का त्योहार जो पहले मुख्य रूप से बिहार के कुछ भागों मे मनाया जाता था,अब देश के कई भागों में मनाया जाने लगा है । छठ पूजा अभी भी बिहार के प्रत्येक जिले मे पूर्ण रूप से नही मनाया जाता है। ‎ घर परिवार वाले प्रायः छठ पूजा के लिए नव दम्पति को दबाव देते है और नही मनाने पर उन्हें तिरस्कृत व ओछे नजरो से देखा जाता है | सूर्यपूजन की जो विधी और महात्म ब्रह्मवैवर्तपुराण, ब्रह्मखंड  मे लिखा है उसमें भी छठ मईया का नाम तक नही । सूर्य पुल्लिंग है जबकि छठ मईया स्त्रीलिंग , फिर सूर्य पूजन का नाम छठ मईया होना क्यो और कैसे सम्भव है ?? कुछ लोगों का मानना है कि छठ मैया सूर्य की बहिन है !! भला सूर्य की कोई बहिन कैसे हो सकती है ? हां सूर्य का पिता जरुर है जिसने उसको उत्पन्न किया है और वह है परमपिता परमेश्वर । सब मनुष्यों को उसी की पूजा अर्थात योगाभ्यास द्वारा उपासना करनी चाहिए । यह विडम्बना ही है कि उस एक सर्वव्यापी परमात्मा की उपासना व वेदादि शास्त्रों का स्वाध्याय छोड लोग नाना प्रकार के काल्पनिक देवी देवताओं की पूजा व पुराण आदि अनार्ष ग्रन्थों को अधिक महत्व देने लगे हैं !!


बिहार मे कहा जाता है कि छठ मईया साल मे दो बार आती है ! प्रश्न उठता है बाकी के पूरे साल कहाँ चली जाती है ? उनके आने जाने की सूचना सर्वप्रथम किसे मिली थी ? और प्रत्येक वर्ष आने जाने की सूचना किसको मिलती है ?? अगर सच मे छठ मईया से माँगी हुई मन्नत पूरी होती है तो ये लोग आतंकवादियो की मौत और उनके ट्रेनिंग सेन्टरों की बर्बादी क्यो नही मांगते ? रिश्वतखोर और भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियो और कर्मचारियो के लिए सजा क्यो नही मांगते ? गौहत्या करने वालो के लिए प्राणदंड क्यो नही मांगते ? काले धन रखने वालो के लिए मौत क्यो नही मांगते ? क्या ये लोग किसी शुभ मुहूर्त का इन्तजार कर रहे है ??


उन गायको को क्या कहा जाए जिन्होने संगीत जैसी पवित्र विद्या को केवल मात्र व्यापार व धन कमाने का साधन बना रखा है और छठपूजा पर दिन रात अश्लील और वेद विद्या विरोधी गाने गा कर संगीत को अधर्म के दलदल मे गोते मरवा रहे हैं । क्या पैसे के सामने धर्म का कोई महत्व नही ? नेताओं को जनता के वोट चाहिए और मीडिया को अपनी टी आर पी , धर्म जाये भाड में !!


सूर्य पूजा का वास्तविक अर्थ है सौर उर्जा के विज्ञान को अच्छी तरह जानकर उससे पूरा पूरा लाभ उठाना जैसे विद्युत उत्पादन, धूप स्नान आदि । आस्था के नाम पर ऋषिमुनियों की इस धरती पर सब ओर पाखंड का ही बोलबाला हो चला है ! मूर्तियों के हार श्रंगार, पूजा अर्चना, विसर्जन, जानवरों की कुर्बानी व अन्धपरम्परायों को ही लोग धर्म व मुक्ति का साधन मानने लगे हैं ! !**ओ३म् सर्वज्ञ*
*वेद वरदान आर्य*


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