बोली से जीवन का सम्बंध
बोली
बोली एक प्रधान है,सम्बंधों की डोर,
जीवन में रस घोलती,सहज उदय कर भोर।
सहज उदय कर भोर,चित्त को जागृत करती,
जैसे कोयल बोल,कर्ण रस गागर भरती।
कल्पनेश रस घोल,जगत के द्वार रँगोली,
भर जाए रस रंग,अमोलक सुन कर बोली।
बोलें सत्य विचार कर,हो मिठास भरपूर,
सम्मुख मुख में घुल रहे,लड्डू मोतीचूर।
लड्डू मोती चूर,हृदय को गद्गद कर दे,
दूर करे मन क्लांत,शाँति उर भीतर भर दे।
कल्पनेश उर द्वार,साधना का यह खोलें,
शुभ जीवन का मंत्र,गिरा निज अधरन बोलें।
बोली से रोली लगे,शोभित जग में भाल,
खिला कमल दल ज्यों लगे,जल लहराता ताल।
जल लहराता ताल,देखकर दृग खिल जाते,
मानस जहाँ मराल,तैरते अति सुख पाते।
भर जाती मृदु भार,धरा की अनुपम ओली,
ऐसी पूर्ण मिठास,जहाँ पर उपजे बोली।