बिहार में संवेदनाओं का अकाल

भारत एक विशाल जनसँख्या बहुल देश है प्राकृतिक आपदाओं समेत अन्य हादसे होना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन जब राजनितिक हादसे हो या लापरवाही तो प्रश्न खड़े करना एक आम आदमी का अधिकार भी है और उसका कर्तव्य भी। हाल ही में बिहार के मुजफ्फरपुर में 140 से अधिक मासूम बच्चों की मौत के बाद भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत देश सभी नेताओं की चुप्पी बरकरार है। जबकि टीम इंडिया के बल्लेबाज शिखर धवन की अंगुली में चोट लगने पर प्रधानमंत्री समेत देश के अनेकों दिग्गजों ने संवेदना प्रकट की लेकिन मुजफ्फरपुर मे चमकी नामक बुखार से पीड़ित बच्चों की मौत पर किसी ने संवेदना प्रकट करना उचित नहीं समझा।


पिछले एक हफ्ते से ज्यादा समय से बिहार में चमकी बुखार ने जो तांडव मचाया है उससे सेंकडों परिवारों के घरों के चिराग बुझ गये है। हालात ये तक बताये जा रहे है कि पिछले कई दिनों में अस्पतालों से ठीक होकर घर वापस जाने के बजाय बच्चे मर कर ही वापस गए है।. ऐसा नहीं है कि बिहार सरकार पहली बार इस बीमारी का सामना कर रही हो बल्कि इससे पहले भी या हर साल यह बीमारी अपना मुंह खोलकर मासूमों को अपना निवाला बनाती है। किन्तु अभी तक सरकार ने इस पर कोई बड़े व्यापक कदम नहीं उठाय।. किसी तरह क्रिकेट मैच व अन्य गैर जरुरी मुद्दों से निकली मीडिया ने जब इस पर सवाल उठाया तो उल्टा उसी पर सवाल उठने लगे। मुख्यमंत्री नितीश कुमार से लेकर बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी  इतनी बड़ी त्रास्दी पर चुप हैं और पत्रकारों के चमकी बुखार को लेकर सवाल करने पर उन्हें बाहर जाने के लिए कह देते हैं।


यहाँ तक किसी दलित और मुस्लिम के साथ हुए कथित भेदभाव को लेकर संसद तक शोर मचा देने वाला विपक्ष भी इस पर मौन है। बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। प्रश्न ये भी है कि आखिर इतनी बड़ी त्रासदी पर सारे राजनेता मौन क्यों हैं? क्या मौन की एक वजह इन नेताओं की आत्मग्लानि समझी जाये क्योंकि ये जवाब देने की स्थिति में नही हैं। पिछले एक दशक से ये बीमारी मुजफ्फरपुर के हजारों बच्चों को लील गई लेकिन उसका कोई इलाज आज तक नहीं निकला। देखा जाये बिहार में नीतीश कुमार सरकार के 14 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। नितीश सरकार तो इसके लिए जिम्मेदार है लेकिन विपक्ष भी अपनी भूमिका से बच नहीं सकता। इस बीमारी ने एक बार फिर नेताओं की पोल खोल के रख दी है।


इन मौतों के लिए पहले लीची को जिम्मेदार ठहराया गया फिर कहा गया नहीं गरीबी और कुपोषण की वजह से बच्चों की मौत हो रही है। यदि ये मौते कुपोषण की वजह से हो रही है तो इसके लिए कोई और नहीं बल्कि जिम्मेदार सरकार ही हैं क्योंकि बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार कई योजनाएं चला रही है। उसके लिए करोड़ों का बजट है, समाज कल्याण विभाग का एक भारी भरकम अमला है, गाँव और ब्लाक स्तर पर आंगनवाड़ी सेविकाएँ है, बाल विकास परियोजना से हर एक जिले में अधिकारी नियुक्त होते है। यदि फिर भी भूख और कुपोषण से बच्चों की मौत हो रही है तो इन पर भी सवाल उठने चाहिए गरीब और कुपोषित बच्चों का निवाला कहीं भ्रष्ट अधिकारियों के जेब में तो नहीं जा रहा है? इसकी भी पड़ताल जरुरी है।


हालाँकि राज्य सरकार की तरफ से कई तत्कालीन कदम उठाए गए हैं, बाहर से डाक्टर भी बुलाये गए? अस्पताल के सिस्टम को मीडिया के द्वारा दिखाने के बाद ठीक किया गया। आईसीयू के अन्दर बेड क्यों बढ़ाए गए लेकिन ये तमाम कार्यवाही इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि सरकार इस विपत्ति के लिए पहले से तैयार नहीं थी जबकि ये विपत्ति हर साल आती है। क्या सरकारों को अपने स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर गंभीर सोच नही बनानी चाहिए? आज उपमुख्यमंत्री इस बीमारी के रिसर्च के 100 करोड़ रूपये की मांग कर रहे हैं, यह काम पहले भी हो सकता था। वर्तमान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन जी ने कई साल पहले इसी बीमारी के दौरान मुजफ्फरपुर आये थे और यह बयान दिया था कि इस बीमारी का पता लगाने के लिए अनुसंधान किया जाएगा लेकिन कई वर्ष बीत गये अभी तक इस कितना आगे बढे यह सवाल भी देश की स्वास्थ व्यवस्थाओं की पोल खोल रहा है। सरकार कोई भी हो वह नींद में रहती है। उसे लगता है कि संसद में बैठकर कानून बना देने से और आयुष्मान योजना का ऐलान कर देने मात्र से लोगों की मुश्किलें हल हो जाती हैं पर ऐसा नहीं है। बताया जाता है आप किसी मरीज को अस्पताल में ले जाते हैं तो आपको उसी वक्त बताना होता कि आप आयुष्मान कार्ड वाले हैं, बाद में बताएंगे तो यह योजना मान्य नहीं होगी और अगर आपने आयुष्मान का नाम लिया तो अस्पताल फिर कोई बहाना बताकर इलाज से कई बार इंकार भी कर देता है। नीतीश के इस कथन में जरुर दम है कि लोगों के बीच जागरूकता की कमी है। इस बीमारी की जड़ें गरीबी और कुपोषण से जुड़ी हैं, ये बिहार की एक महत्वपूर्ण समस्या है। इस कारण सरकार को सबसे ज़्यादा कुपोषण को ध्यान में रखकर एक बड़ी लड़ाई लड़नी होगी ताकि किसी के घर का चिराग इलाज की कमी की वजह से ना बुझे।


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