भक्ति

भक्ति
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि ज्ञान और भक्ति के योग से यह जीव मुक्ति को प्राप्त होता है।
मान लो कि प्रथम हम केवल भक्ति के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं।जब हमें ये ज्ञान ही नहीं होगा कि ईश्वर क्या तत्व है,प्रकृति क्या है,जीव क्या है,मुक्ति क्या है,आनंद क्या है,सत्य और झूट का विवेचन न कर सके ,ईश्वर व्यवस्था ,कर्म फल इत्यादि को न जान सके तो हम अपनी भक्ति को ईश्वर के प्रति सुदृढ न कर पाएंगे।
मान लो एक मानव शिव को मानता है कि शिव ही परम तत्व है।अन्य देवी देवता उनके कंकर मात्र है ।अब यदि कोई विष्णु भक्त आकर ये सिद्ध कर दे किनहीं,विष्णु ही परम तत्व है तथा शिव उनके कंकर मात्र है। आप देखलो विष्णु पुराण तथा भगवत पुराण,रामायण भी यही कहते हैं,तो हो गया उसका man डांवाडोल ।अब उसकी भक्ति विष्णु की तरफ़ मूड जाएगी।अब देखिए उसकेदेवी भक्त पहुंच जाता है,और वह देवी भागवत पुराण का गुणगान करता है कि देवी ही सबसे बड़ी है , ब्रह्मा विष्णु महेश तो कंकर मात्र है तथा ये सब देवी देवता उनकी आरती उतारते हैं पूजा करते हैं तब उसका मन विष्णु से भी हट जाता है। अब कोई गणेश भक्त आकर अपनी पुराण खोल कर बेइठ जाता है कि बिना गणेश भक्ति के तो कुछ भी संभव नहीं है ,देखो सभी देवी देवता प्रथम गणेश की ही पूजा करते हैं।अब उसकी दृढ़ता फिर खत्म हो जाती है, और वह डावाडोल हो जाता है ।
   अब देखिए एक आदमी का बच्चा खो गया है,या उसकी पत्नी बीमार है ,या किसी स्त्री के पति को कुछ तकलीफ है ।वह मंदिर में जाती है,या जाता है । इन सब देवी देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं,क्योंकि एक पर तो उन्हें विश्वास नहीं है ,आप स्वयं देख लो , कहां मानते हो आप एक को ।एक दो दिन मन्नत पूरी न होने पर,कोई व्यक्ति आपके पास आता है,और कहता है कि फला मोहल्ले में फला बाबा आए हैं और वे बहुत सिद्ध है,तथा उन्होंने कईयों को रोग मुक्त कर दिया है ,या फला पीर पर कोई चादर चड़ाता है या पूजा अर्चना करता है तो उसके सब कष्ट दूर हो जाते हैं।या हमारे मोहल्ले में जो पंडित जी रहते हैं वे बहुत माने हुए हैं और सब सच्च सच बताते हैं।
  बस उठ गया उस सख़्श का इन देवी देवताओं पर से विश्वास और दौड़ लिया उस शख्स के साथ उन मुला मोलविय ,पंडत बनाओ, पीर फकीर के पास।**ओ३म् सर्वज्ञ*
*वेद वरदान आर्य*
     यही अज्ञान athart ईश्वर तत्व के प्रति ज्ञान न होने के कारण हमने इतने देवी देवता उत्पन कर लिए हैं ,जो हमें मुक्ति की तरफ़ न ले जाकर अंधकार और पतन की ओर ले जा रहे हैं।मतलब इन जन्म जन्मांतरों के फेर में डाले हुए हैं जो गीता के अनुसार ८४लाख योनियां है ।
  मतलब कहने का ये है कि बिना ज्ञान के केवल भक्ति से हम ईश्वर को नहीं जान सकते या पा सकते । 
इसी प्रकार ईश्वर के प्रति भक्ति भी जरूरी है।पर भक्ति क्या है। 
   भक्ति है विश्वास । मतलब उसके बताए नियमो का पालन करना ।
मतलब जब हमें ये विश्वास हो जाएगा कि वह जो करता है अच्छा करता है। सर्व शक्िमान हैं,सत्य सनातन है,चेतन है, न्यायी है,वही हम जीव का जन्म जन्म का साथी है ,परम तत्व है, हमारे अंदर और बाहर सब जगह है।शरीर रूपी हम या हमारे सगे सम्बन्धी कार्य है सनातन  नहीं तो हमारे मन में ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन हो जायेगा । यहीं भक्ति है,तथा धीरे धीरे इस संसार से हमें वैराग्य होता जायेगा और एक दिन हम मुक्त हो जाएंगे,और फिर जन्म मरण में नहीं आयेंगे।क्योंकि इस संसार में मोह कि भावना के कारण ही हम बार बार जन्म को प्राप्त होते हैं।     
आपका *
*ओ३म् सर्वज्ञ*
*वेद वरदान आर्य*


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