बीता हुआ वर्ष

बीता हुआ वर्ष


इधर ठंढ बहुत बढ़ गयी है।राँची के हमारे इलाके में रातों का तापमान तीन डिग्री तक पँहुच गया है।आज धूप खिली तो सोचा कि सामने पार्क में धूप सेंकने के सार्वजनिक उत्सव में सम्मिलित हो जाएं।यह उत्सव बुजुर्गों और बच्चों के लिए खास होता है।पर इसमें शामिल होकर मुझे आनन्द आ गया।आनन्द का एक मुख्य कारण यह रहा कि अचानक रामलाल जी कहीं जाते दिख गए।उन्होंने मुझे भी देख लिया।बस झटकते हुए हमारी तरफ लपक लिए।पास आते ही नमस्कार की औपचारिकता के बाद चर्चा मौसम की हुई।वे बोले-गर्मी में गर्मी न पड़े,बरसात में बरसात न हो,जाड़े में ठंढ न हो,राजनीति में निचला स्तर तक लोग न पँहुचे,सरकारी दफ्तरों में घपले-घोटाले न हों,नेतागिरी में मुफ्तखोरी न हो-ऐसा कभी होता है क्या?उनके ज्ञान से मैं निरुत्तर हो गया।बात बदलने के लिए मैंने कहा-सन दो हज़ार उन्नीस अब आगामी सिर्फ दो दिनों का मेहमान है।इसकी अन्तिम बेला आ चुकी है।इसलिए अब इसे बीता हुआ वर्ष मानने कोई विशेष आपत्ति नहीं होनी चाहिए।तब रामलाल जी,बताएं-कैसा रहा बीता हुआ वर्ष?


              रामलाल जी ने चटाक से अपनी बण्डी से एक छोटा नोटबुक निकल कर बोले-मैंने आज ही सुबह हिसाब किया है।मेरा पिछले साल कुल खर्च डेढ़ सौ माला,एक सौ पुष्पगुच्छ, बीस बाबुओं के चाय-नाश्ते पर छियासठ दिनों का बिल,पैंतालीस अधिकारियों के क्लब के कुल पचपन दिनों का बिल और करीब दो सौ  आरटीआई दाखिल करने में खर्च कुल करीब दो लाख हुए।और आमदनी सवा लाख हर महीने फिक्स्ड,ठीकेदारों ,व्यापारियों से सरकारी दफ्तरों के अधिकारियों के मार्फ़त करीब छः लाख रुपये हर महीने कुल सतासी लाख रुपए।इस तरह बेहद छोटे पैमाने पर काम करने से कुल पचासी लाख रुपए ही बचत हुई,क्योंकि मेरा तो अपने ऊपर कोई खर्च होता नहीं है।मैं आश्चर्य चकित हो गया।मुस्कुराते हुए पूछ लिया-तब तो बीता हुआ वर्ष आपके लिये बड़ा फलदायी रहा।रामलाल जी भड़क गए।बोले-क्या खाक अच्छा हुआ?इस साल कोशिश करते हैं कि किसी तरह करोड़ पार कर जाएं।मुझे काफी उत्सुकता हुई।मैंने उनसे उनके बीते हुए वर्ष के बारे में पूरा खुलासा करने को कहा।
                                                                                                                                                       रामलाल जी नोटबुक वापस रखते हुए मुझे कोने में ले गए।फिर खाली बेंच पर बैठकर पिछले वर्ष का पूरा खुलासा किया,जिसे पाठकों के ज्ञानवृद्धि के लिए देता हूँ।
                                 पिछले साल के  प्रारम्भ में ही वे मुहल्ले के मंदिर में शाम को जाने लगे।अंधेरा होने पर उन्हें पाँच बुजुर्ग बराबर एक कोने में पीपल के चबूतरे पर बैठे देखते।सप्ताह भर में उनसे दोस्ती हो गयी।वे सभी रिटायर्ड सरकारी बाबू थे,जो भवन-निर्माण ,सड़क निर्माण, बिजली,खनन और परिवहन विभागों से थे।सभी वहाँ हर दिन गाँजा पीते,गपशप करते।अगले सप्ताह उनलोगों को गाँजे की व्यवस्था नहीं हो सकी,जो काफी चिंता का विषय बन गयी।तभी रामलाल जी ने पुलिस के जमादार साहब  मथुरा जी की मदद से सालों भर मुफ्त में गाँजे की व्यवस्था करवा दी।गाँजे के नशे में वे सब अपने अपने विभागों के भ्रष्टाचार के पोल खोलते,रामलाल जी उसके सम्बंध में सूचना अधिकार कानून के तहत कागजात की मांग कर सम्बंधित अधिकारियों से नगद वसूली बकायदा एकमुश्त तथा निर्धारित रकम प्रतिमाह वसूल करते।इस तरह उनका बीता हुआ वर्ष लाभ करा गया।अब वे इसमें जोर लगाकर लगने वाले हैं।
                                                                रामलाल जी के जाने के बाद  मथुरा जी मिल गए।उनसे भी बीते हुए वर्ष के सम्बंध में पूछ लिया।वे बोले-पिछले साल अपराध बहुत बढ़ा।जितना बढ़ा अपराध , उतने ही ज्यादा पीड़ित और अपराधी।दोनों तरफ से माल मिला।कई मामलों को लटकाने के पैसे अलग हैं।फिर कबाड़ी वाले,दारू वाले,जमीन-दलाली वाले,सूचना पर समय पर पँहुचने के लिए,सूचना मिलने पर देर से जाने के लिए अलग हिसाब है।
                                                                                                    मथुरा जी के बाद स्वयं घोषित साहित्यकार चौबे जी मिले।उन्होंने बताया कि बीते वर्ष वे कुल सौ से ज्यादा सम्मान की जुगाड़ में सफल हो गए।दो सौ रचनाएँ अखबारों में छपवाने में सफल हुए।तभी मैंने पूछ लिया-आपके कितने नियमित पाठक हैं?चौबे जी नाराज़ हो गए।यह बड़बड़ाते हुए चले गए - कोई पढ़े न पढ़े, यह मेरा सोचने का काम नहीं है।मुझे सम्मान और छपने से मतलब रहता है।मुझसे जलने वाले बताते हैं कि मेरा तथाकथित और घटिया साहित्य कोई नहीं पढ़ता।पर आप ही कहें-इससे मुझे क्या फर्क पड़ता है?
                                                                                                                     अब मैं पार्क से लौटकर घर आ रहा था कि गार्ड तिवारी मिले।उनसे भी पूछ डाला।वे बोले-बीते वर्ष खेती में बीस हज़ार का नुकसान हुआ।घरवाली की बीमारी में चालीस हजार खर्च हो गए।ऐसी ही बहुत बात है साहब।बीते वर्ष एक डिसमिल जमीन गिरवी रखा था।हजूर,आम आदमी का बीता वर्ष ऐसा ही रहा।पर सोचता कौन है?
     मैं अब चिंतन में हूँ।


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