“अमर शहीद भगत सिंह को श्रद्धाजंली”


“अमर शहीद भगत सिंह को श्रद्धाजंली”





         देश को अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्त कराने तथा गुलामी दूर कर देशवासियों को स्वतन्त्र कराने के स्वप्नद्रष्टा शहीद भगत सिंह जी का २८ सितम्बर को 109 वां जन्म  दिवस था। शहीद भगद सिंह ने देश को स्वतन्त्र कराने के लिए जो देशभक्ति के साहसिक कार्य किये और जेल में यातनायें सहन कीं, उन्हें देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह देशभक्त, वीर, साहसी, बलिदानी भावना वाले भारत माता के ऐसे पुत्र थे जिन पर भारतमाता व देश को गर्व है। हमें यह पंक्तियां लिखते हुए उनके जीवन की वह घटना याद आ रही है जब कोर्ट में हसंने पर अंग्रेज न्यायाधीश ने उनसे कहा था कि यह कोर्ट का अपमान है। इस पर वह बोले थे कि जज महोदयमैं तो फांसी के फन्दे पर खड़ा हो कर भी हंसूगांतब यह किस कोर्ट का अपमान होगा?


          भगत सिंह जी के पिता का नाम सरदार किशन सिंह, माता का नाम विद्यावती और दादा का नाम सरदार अर्जुन सिंह था। आपका पूरा परिवार सिख होकर भी आर्यसमाजी था। सरदार अर्जुन सिंह जी के बारे में तो हमने पढ़ा है कि वह जब कहीं जाते थे तो हवन कुण्ड उनके साथ होता था और वह प्रतिदिन हवन करते थे। भगत सिंह जी दयानन्द ऐग्लो वैदिक स्कूल में पढ़े थे तथा भाई परमानन्द जैसे महर्षि दयानन्द जी के प्रसिद्ध क्रन्तिकारी भक्त उनके मार्गदर्शक थे। भगत सिंह जी का यज्ञोपवीत संस्कार भी हुआ था जो आर्य समाज के पुरोहित पंलोकनाथ तर्क वाचस्पति जी ने कराया था। अमेरिका यान से अन्तरिक्ष वा चन्द्रमा में जाने वाले श्री राकेश शर्मा पं. लोकनाथ जी के ही पौत्र हैं। यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि साण्डर्स को गोली मारने के बाद भगतसिंह जी वेश बदल कर कोलकत्ता गये थे और वहां आर्यसमाज में निवास किया था। आप जब कलकत्ता से अन्यत्र गये तो अपने भोजन के बर्तन वहीं आर्यसमाज के सेवक को दे आये थे और उससे कहा था कि इनमें किसी देशद्रोही को भोजन मत कराना।


  पंजाब केसरी लाला लाजपतराय महर्षि दयानन्द के शिष्य थे। वह कहते थे कि आर्य समाज मेरी माता है और महर्षि दयानन्द मेरे पिता हैं। आजादी के आन्दोलन में लाला लाजपत राय और भगतसिंह के चाचा श्री अजीत सिंह, यह दो ही ऐसे वीर क्रान्तिकारी थे जिन्हें जलावतन अर्थात् देश निकाला दिया गया था और यह दोनों ही महर्षि दयानन्द व आर्यसमाज के अनुयायी थे। लाला लाजपत राय पर अंग्रेजों ने जो लाठियां बरसाईं थी, उसका बदला लेने की कसम ही भगत सिंह जी ने खाई थी और उसी कारण उन्होंने साण्डर्स को अपनी पिस्तौल का निशाना बनाया था। इस देश भक्ति के गौरवपूर्ण कार्य के लिए उन्हें व उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरू को भी उनके साथ फांसी दी गई थी। हमें याद है कि हमने अपनी 12 वर्ष की आयु में सन् 1964 में फिल्म कलाकार मनोज कुमार निर्मित शहीद फिल्म देखी थी। लगभग 7 या 8 बार हमने चकरौता के सैनिक सिनेमाघर में इसे देखा था। चकरौता में हमारे पिता सैनिक क्षेत्र में उन दिनों कार्य करते थे और हम गर्मीयों के स्कूल के अवकाश में वहां गये हुए थे। हमें अभी तक याद है कि इस फिल्म को देखकर ही हमने भगत सिंह और अन्य देशभक्तों से प्रेरणा ग्रहण की थी। तभी से इस फिल्म के प्रायः सभी गाने हमें स्मरण थे और हम विद्यार्थी काल में इन्हें प्रायः गुनगुनाया करते थे। 1- मेरा रंग दे बसन्ती चोला, 2-  वतन वतन हमको तेरी कसमतेरी राह में जान तक लुटा जायेंगेफूल क्या चीज है तेरे कदमों में हमभेंट अपने सरों की चढ़ा जायेंगे तथा 3- सरफरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैदेखना है जोर कितना बाजूएं कातिल में हैआदि इसके प्रमुख गीत थे।


 


 


 



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