अहं भरे अस्तित्व में , छिपे सूक्ष्म बहु जाल

अहं भरे अस्तित्व में , छिपे सूक्ष्म बहु जाल !
झूठ तले चालाक मन , खोज रहा नव चाल !
काम वासना लोभ में , डूब रहा दिन रात !
कब छूटे अभिमान ये , सरल बनूँ जगपाल !!


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