पूर्व संस्कारी या हठी दुर्भिमानी
पूर्व संस्कारी या हठी दुर्भिमानी
जीवन में व्यक्ति अनेक गलतियाँ करता है, क्योंकि उसे सब क्षेत्रों का अनुभव नहीं होता। बचपन में तो बहुत सी गलतयाँ होती ही रहती हैं।
जैसे जैसे माता पिता बच्चों को सिखाते जाते हैं, और बच्चे भी सीखने की मेहनत करते हैं, तो धीरे-धीरे उनका ज्ञान बढ़ता है। जैसे जैसे ज्ञान बढ़ता है, तथा पूर्व जन्म के संस्कार भी यदि अच्छे होते हैं, तो वे बच्चे आगे गलतियां कम करते जाते हैं, और अच्छे काम ठीक काम अधिक करते जाते हैं। इससे उन का सुख बढ़ता है, तथा दुख कम होता जाता है। मनुष्य जीवन को जीने का सही तरीका तो यही है। क्योंकि मनुष्य, जन्म से कुछ भी सीखकर नहीं आता, उसे सब कुछ यहीं माता पिता गुरुजनों और विद्वानों से सीखना पड़ता है, तभी उसकी बुद्धि का विकास होता है परंतु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके पूर्व जन्म के संस्कार अधिक अच्छे नहीं होते। वे जन्म से ही हठी क्रोधी लोभी दुरभिमानी इत्यादि दोषों से युक्त होते हैं। उनको सिखाना समझाना अधिक कठिन होता है। ऐसे बच्चे भी कुछ कुछ सीखते तो हैं, पर वे माता-पिता बड़े बुजुर्गों विद्वानों के निर्देश पर कम विश्वास करते हैं, तथा अपने हठ एवं दुरभिमान आदि दोषों के कारण काफी लंबे समय तक गलतियां करते रहते हैं, और दुखी होते रहते हैं। ऐसे लोग संसार में अनेक दुख उठाकर तब सीखते हैं। तब थोड़ा-थोड़ा उनका सुधार होता है तो जिस परिवार में लोग अपने बड़े बुजुर्गों की बात नहीं मानते, अपनी मनमानी अधिक करते हैं, ऐसे लोगों के परिवार में झगड़े अधिक होते हैं, दुख अधिक होता है। काफी दुखी होने के बाद, उन झगड़ों को सुलझाने के लिए उनको वकीलों की तथा न्यायालय की सहायता लेनी पड़ती है। ऐसे लोगों का जीवन दुख चिंता और तनावमय होता है।
आप भी अपना परिक्षण करें। आप इन दोनों में से किस वर्ग में आते हैं, पूर्व संस्कारी? या हठी दुरभिमानी?
आपको इन बातों पर विचार करके निर्णय करना है, कि दोनों में से कौन सा वर्ग अधिक सुखी रहता है, और आप किस वर्ग में रहना/ जाना चाहते हैं।