आत्मिक भोजन के मल
आत्मिक भोजन के मल
२-जैसे प्रत्येक वस्तु के अन्दर अपना-अपना गुण विशेष है -किसी से हड्डी अधिक बनती है, किसी से चर्बी, किसी से मांस, किसी से रक्त आदि या जैसे किसी एक वस्तु से अनुपात से कुछ हड्डो, कुछ चर्बी, कुछ मांस बनता है। ऐसे ही प्रभु-भक्ति, श्रद्धा, ईश्वरविश्वास, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य आदि से विविध गुण उत्पन्न होते हैं । ऐसे ही आत्मिक भोजन से पहले अन्तःकरण की शुद्धि है, जिसका दर्जा रस का है । यदि अन्तःकरण की शुद्धि न हो तो वैराग्य (रक्त) नहीं होता। और वैराग्य न होने से अन्तःकरण की स्थिति कैसे हो सकती है ? धातु तो शरीर के अन्दर रहते हैं और शरीर को बनाने, उन्नत करनेवाले होते हैं । ऐसे ही आत्मिक भोजन के सात-धातु भी आत्मा के साथ रहते हैं। १- अन्तःकरण की शुद्धि, २- वैराग्य, ३चित्त की एकग्रता, ४- उपासना, ५- दुःखों से दूरी, ६आनन्द और ७- मुक्ति और ये आत्मा को ही उन्नत करनेवाले होते हैं, और मल को बाहर फेंकने में समर्थ होते हैं। जो इन धातुओं से स्वतः बनते हैं । आत्मिक भोजन के मल १- धन, २- पुत्र, ३- मित्र, ४- स्त्री ५शरीर ६- यश-मान, और ७- शोभा । उपधात-- १- नीरोगता, २- सौंदर्य, ३- धैर्य ४- बुद्धि ५- सरलता ६- नम्रता, और ७- उदारता ।