आत्मनिरीक्षण योगी बनने के उपाय

*🔥 ओ३म् 🔥*


*🌷आत्मनिरीक्षण योगी बनने के उपाय🌷*


मनुष्य यदि अपने जीवन को दिव्य, श्रेष्ठ, आदर्श महान् बनाना चाहता है तो नित्य सोने से पूर्व आत्मनिरीक्षण करे, अपने अन्त:करण में झांके कि दिन भर मैंने क्या-क्या त्रुटियां-दोष-भूलें की हैं। विचारें क्या किया जो नहीं करना चाहिए था? त्रुटियों को पकड़ें, प्रायश्चित करें, स्वयं दण्ड लें और भविष्य में न करने का प्रयत्न करें। कोई व्यक्ति बाहरी तौर से कितना ही धन से, बल से, कपड़ों से साफ-सुथरा सभ्य और सफल हो, परन्तु अन्त:करण से मलिन, कमजोर खिन्न व दु:खी होगा तो वह गिर जायेगा।


वाह्य दु:ख के बजाय मानसिक शोक-पीड़ा-काम, क्रोध, लोभ, मोह से व्यक्ति अधिक दु:खी रहता है। आज चिन्तन की शैली उलटी है। व्यक्ति अन्य के दोष तो देखता है परन्तु स्वयं के नहीं। चाहे कोई कितना ही पढ़ लिख जाए, परन्तु जब तक कथनी-करनी एक न होगी तब तक ऋषियों का जमाना धरती पर नहीं उतारा जा सकता।


अपने आपको व्यक्ति बढ़ा-चढ़ाकर दूसरे के सामने पेश करता है कि उसे यश-बड़ाई-मान मिले, परन्तु आगे चलकर यह उसके हास्यास्पद पतन का कारण होता है। ईश्वरविश्वासी को भौतिक साधनों द्वारा अपने को बड़ा दर्शाने की आवश्यकता नहीं है।


आज माता-पिता, शिक्षक-गुरु, समाज व राजदण्ड का भय समाप्त हो गया है। अत: अपराध बहुत बढ़ गए हैं। एक व्यक्ति अपनी क्रिया से सैकड़ों हजारों को दु:खी करता है, परन्तु आत्मनिरीक्षण करने वाला स्वयं त्रुटियों को, उलटी आदतों को पकड़ता, सुधारता और दूर करता जाता है।


एक आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अपने मन को पढ़ना है। प्रशंसा का मोह, यश की कामना, अहंकारिक प्रतिक्रिया आदि वस्तुओं को छोड़ना साधक के लिए अनिवार्य है।


यदि अन्त:करण ठीक होगा तो सब कार्य सफल होंगे। अगले जन्मों में साथ चलने वाली वस्तु अन्त:करण है। सांसारिक उपकरण यहीं रह जायेंगे। वेद में कहा है *'कृतं स्मर'*–अपने किये कर्मों को देख। आन्तरिक शल्यचिकित्सा तो स्वयं करनी पड़ती है। नित्य देखें कि काम की वासना, क्रोधाग्नि, द्वेषादि पहले थे वैसे ही हैं या कुछ कम हुए?


अपने जीवन की ऋषियों व आप्तपुरुषों से तुलना करें कि हमारा जीवन सत्पुरुषों जैसा है या पशु समान। आन्तरिक निर्माण के बिना सुख-चैन शान्ति नहीं। अगले जन्मों में शुभाशुभ कर्मों के संस्कार ही, सम्पत्ति के रुप में साथ जायेंगे, अन्य कुछ नहीं। बाहर से तो चमक-दमक पर अन्दर निपट अन्धेरा। व्यक्ति अपने दोषों को छिपाता है। पर ईश्वर से कुछ नहीं छिपा। ईश्वर सब जानता है।


एक दोष आ जाये तो उसके साथ-साथ अनेक दोष प्रवेश कर जायेंगे और एक सद्गुण आयेगा तो साथ में अनेक सद्गुण चले आयेंगे। एक दोष बीड़ी-सिगरेट का आने से फिर शराब, क्लब, जुआ, देर से सोना-उठना, प्रमाद-आलस्य, झूठ-कपट-क्लेश, दंगा-फसाद एक के पीछे एक ऐसे अनेक दोष व्यक्ति में प्रवेश कर जाते हैं। एक गुण *ईश्वर-भक्ति* अपनाने से प्रात: उठना, स्रान, व्यायाम, सत्संग, वेदपाठ, सन्ध्या, फिर समय पर सांसारिक कार्यों में जुटना आदि अनेक गुण प्रवेश कर जाते हैं। शुद्ध ज्ञान वाला ही दोषों से बच सकता है। 


*जो खराब जानकर भी छोड़ते नहीं और अच्छा जानकर भी अपनाते नहीं वे असफल हैं। जो छूटने वाली चीजें हैं उन चीजों को इकट्ठा कर रहे हैं, जो साथ जायेगा उस धर्म का बैंक बैलेन्स शून्य है।*


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