आर्यसमाज की प्रथम महिला प्रचारक- माई भगवती

पंजाब प्रान्त के होशियारपुर नगर में एक कुलीन परिवार की युवा लड़की अपनी तरुणावस्था से ही वैराग्यवती हो गई थी। परिवार का त्याग कर गेरूए वस्त्र धारण कर सदा ईश्वर साधना में वह लीन रहने लगी। गुरुजनों की कृपा से वेदांत के कुछ ग्रंथों का अध्ययन किया। देवयोग से स्वामी दयानंद कृत सत्यार्थ प्रकाश का प्रथम संस्करण उन्हें पढ़ने हेतु प्राप्त हुआ। सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ने में भगवती के विचारों में अपूर्व क्रांति हुई और उसका परिणाम यह हुआ की उनके स्वामी दयानंद के प्रति असीम श्रद्धा एवं उनके दर्शन करने की तीव्र लालसा उत्पन्न हो गई। उन्हें जब यह सुचना मिली की स्वामी दयानंद मुंबई में है तो वह स्वामी जी के दर्शनों हेतु अपनी भाई के साथ मुंबई पहुंची। स्वामी जी से वार्तालाप करने का माई भगवती को अवसर प्राप्त हुआ। कुछ शंका समाधान के पश्चात स्वामी जी ने उपदेश दिया। स्त्री समाज में विद्या का बड़ा अभाव है। उनको कर्तव्य-अकर्तव्य का कोई बोध नहीं है। यदि आप पुण्य अर्जन करना चाहती हैं तो अपने प्रान्त में जाकर अपनी बहनों में विद्या का प्रचार करो। जो कुछ जानती हो उन्हें सिखाओं। माई भगवती ने स्वामी जी की आज्ञा का जीवन भर पालन किया एवं आर्यसमाज की प्रथम महिला प्रचारक होने के श्रेय उन्हीं को मिला। आपने स्वामी जी के आदेश का पालन करते हुए शिक्षा एवं स्त्री समाज के सुधार में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया।

एक कविता माई भगवती स्वामी जी से क्या प्रेरणा लेकर आई-

तुम जिस पंजाब में रहती हो, विद्या की धूम मचा देना
कर्तव्य जो भूल गई अपना,उनको कर्तव्य सीखा देना
जीवन जो सफल बनाना है और तुमने पुण्य कमाना है
तो एण्ड बण्ड अज्ञान को करके खंड खंड दिखलाना है

आज नारी समाज की सामाजिक प्रगति देखकर स्वामी दयानंद की प्रेरणा एवं माई भगवती का पुरुषार्थ स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।


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