आर्य समाज व आर्यवीर दल
आर्य समाज व आर्यवीर दल
किसी भी परिवार, संस्था, समाज या राष्ट्र को उन्नत बनाने में युवाओं का विशेष योगदान रहता है। इसका कारण यह होता है कि युवाओं के अन्दर उत्साह-सामर्थ्य-शक्ति अधिक होती है, जिसका अभाव बहुत छोटे बच्चों व वृद्धों में प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। युवाओं के अन्दर किसी भी कार्य की दिशा व दशा बदलने की सामर्थ्य होती है, यदि युवा सचरित्र, समर्थ तथा निष्ठावान् हों।
यही कारण है कि आज हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी यह दावा करते हैं कि हम भारत को दुनिया के शिखर पर ले जा सकते हैं, क्योंकि पूरे संसार में अन्य देशों की तुलना में भारत के पास सबसे अधिक युवाशक्ति है। यदि इस युवाशक्ति को ठीक मार्ग-दर्शन दिया जावे तो अवश्य ही भारत विश्व के श्रेष्ठतम देशों में होगा।
जिसके पास युवा शक्ति कम होती है, उसका भविष्य अन्धकार में जाने की सभावना रहती है, क्योंकि युवा कार्यकर्त्ताओंके अभाव में विशेषतः सैन्य व तकनीकी के क्षेत्र में तो उनकी सुरक्षा पर प्रश्न-चिह्न लगने लगते हैं। परिवार-समाज-राष्ट्र के पास सपत्ति हो, पर सुरक्षा की सामर्थ्य न हो तो उनकी सपदा पर विरोधियों की नीयत खराब होने लगती है।
कुछ ऐसी ही स्थिति वर्तमान में आर्य समाज की है। आर्य समाज ने भी अपने को सशक्त-समर्थ-सुरक्षित रखने के लिए युवा इकाई के रूप में आर्यवीर दल संगठन को बनाया। आर्यवीर दल की पहचान आर्य समाज के सैनिक संगठन के रूप में हुई।
आर्यवीर दल ने आर्य समाज के नेतृत्व में आर्य समाज की ही नहीं, अपितु आवश्यकता पड़ने पर अपनी सामर्थ्य/शक्ति के अनुसार सपूर्ण समाज, राष्ट्र एवं हिन्दू जाति की सेवा-सुरक्षा की। देश विभाजन के समय जो हिन्दू शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) से आये, मुस्लिम अंसार गुण्डे उन पर आक्रमण करते, मारने व लूटने का यत्न करते। इस विपत्ति के समय आर्यवीर दल ने हिन्दू शरणार्थियों की सुरक्षा की उनकी सपत्ति को बचाया।
हिन्दुओं के गङ्गा-यमुना इत्यादि तीर्थ स्थलों पर मेले लगते। उनमें मुस्लिम युवक हिन्दू महिलाओं के साथ छेड़खानी करते, तो उनकी सुरक्षा के लिए आर्यवीरों को दायित्व दिया जाता था। हैदराबाद मुक्तिसंग्राम में आर्यवीरों का विशेष सहयोग – बलिदान रहा, क्योंकि आर्यवीरों को आर्य समाज के द्वारा धर्म-राष्ट्र की रक्षा के लिए सज्जित किया जाता था।
वर्तमान में भी आर्य समाज के बड़े समेलनों में व्यवस्था व सुरक्षा की जिमेदारी आर्यवीर दल को ही दी जाती है।
जिन आर्य समाजों में आर्यवीर दल सक्रिय है, उन आर्य समाजों की गतिविधि व शोभा अलग ही दिखाई देती है। वहाँ के कार्यक्रमों की व्यवस्था-सुरक्षा व व्यायाम प्रदर्शन आदि का लोगों के मस्तिष्क पर विशेष प्रभाव पड़ता है। भारत के अनेक प्रान्तों में आर्य समाज के साथ-साथ आर्यवीर दल का कार्य रहा है, इन्हीं प्रान्तों में वीरभूमि राजस्थान भी अग्रणी है। राजस्थान की आर्य समाजों में आर्यवीर दल की विशेष भूमिका है। आर्यवीर दल गंगापुर सिटी नेाी आर्य समाज के प्रचार-प्रसार में बड़ी भूमिका निभाई है। यहाँ का आर्यवीर दल संगठन बड़ा जागरूक है। वर्तमान में भी इस नगर में आर्यवीर दल की दो शाखाएँ सतत कार्य कर रही हैं, यहाँ के शिक्षक व आर्यवीर बड़े योग्य व उत्साही हैं। शाखाओं में आने वाले आर्यवीरों को शारीरिक रूप से सुदृढ़ किया जाता है, वहीं पर उनको योग्य आर्य भद्र पुरुषों द्वारा जीवन की उन्नति के लिए प्रेरित किया जाता है। जिसका परिणाम यह रहा कि शाखाओं में आने वाले दो-तीन आर्यवीरों ने राजस्थान की बोर्ड परीक्षाओं में भी उच्च स्थान प्राप्त किया।
आर्य वीर दल गंगापुर सिटी के मुय प्रेरणा स्रोत माननीय मदनमोहन जी व उनके समस्त सहयोगी हैं। मदन मोहन जी ने अपना पूरा जीवन आर्य समाज व आर्यवीर दल की सेवा में लगाया है। आप एक निर्भीक व दृढ़ आस्थावान आर्य पुरुष है। आपकी छत्रछाया में आर्यवीर दल गंगापुर शहर कार्य करता है। प्रत्येक वर्ष दशहरा पर्व पर आर्यवीर दल द्वारा भव्य कार्यक्रम किया जाता है । जिसमें आर्यवीरों द्वारा व्यायाम प्रदर्शन होता है। शहर के अनेक स्त्री-पुरुष इस कार्यक्रम को देखने आते हैं। कार्यक्रम में एक विशेष कार्य यह किया जाता है कि दर्शक तथा कार्यकर्त्ता संगठन के लिए वीरनिधि एकत्र करते हैं। अपनी स्वेच्छा से लोग इसमें सहयोग करते हैं। यह इस नगर की वर्षों पुरानी परपरा है। इस दशहरे पर कार्यक्रम में समिलित होने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ।
आर्य वीर दल गंगापुर सिटी के 15 वर्ष के घोर संघर्ष के उपरान्त उच्च न्यायालय राजस्थान के आदेशानुसार नगर के बीच में पड़ने वाली 26 दुकानें पिछले वर्ष बन्द करा दी गई। इसका सारा श्रेय आर्यवीर दल व उसके नेता मदनमोहन जी को जाता है। आपने धैर्य नहीं छोड़ा और 15 वर्ष तक केस लड़ते रहे, अन्ततः सफलता प्राप्त हुई। ये हम सब आर्य जनों के गौरव पूर्ण कार्य है। शहर में मुस्लिमों की संया भी पर्याप्त है। यहाँ कई घटनाएँ ऐसी हुईं, जो हिन्दू युवतियाँ मुस्लिम युवकों के साथ चली गई, परन्तु उनका वैदिक रीति से विवाह संस्कार आर्य समाज ने कराया। इसी कारण से नगर के सभी पौराणिक लोग भी मदनमोहन जी का बहुत समान करते हैं तथा आर्य समाज व आर्य वीर दल को मुक्त हस्त से दान देते हैं। आपकी आयु लगभग 70 वर्ष है, परन्तु आपका उत्साह अभी भी युवकों जैसा है, इसीलिए आप सैंकड़ों योग्य आर्य वीरों के प्रेरणा स्रोत रहे। इसी गंगापुर शहर ने दिवंगत सीताराम जी जैसे कर्मठ आर्यवीर को तैयार किया।
इतना कुछ लिखने का उद्देश्य/प्रयोजन यह है कि आर्य समाज व आर्यवीर दल का माता-पिता व संतान जैसा संबंध है। संतान योग्य व समर्थ तथा संस्कारवान होती है तो माता-पिता की उन्नति-प्रगति, यश-प्रशंसा व सुरक्षा होती है। दुर्भाग्य से कुछ आर्य समाज के कथित पदाधिकारी गण आर्य समाज को अलग व आर्यवीर दल को अलग मानने लगे तथा आर्य वीर दल का विरोध करने लगे। आर्यवीरों के आर्य समाज में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाने लगे। इसका कारण रहा सपत्ति। जो अधिकारी आर्यसमाज के धन सपत्ति का मनमाने ढंग से उपभोग करते, आर्यवीर दल द्वारा विरोध किये जाने के भय से ऐसे आर्यवीर दल का बहिष्कार किया विरोध किया, ताकि वे निरंकुश होकर स्वार्थ सिद्धि कर सके।
कुछ दोष आर्यवीर दल का भी हो सकता है, परन्तु यदि सन्तान पथ से विचलित हो जाए तो उसको सही मार्ग दिखाने का दायित्व माता-पिता का होता। ऐसा ही दायित्व आर्य समाज का आर्यवीर दल के प्रति है।
जिस घर में संतान नहीं होती, उस गृहस्थ की सपत्ति पड़ोसियों की नजर टेढ़ी होने लगती है तथा जिसकी संतान योग्य हो बलवान हो, ऐसे गृहस्थ सुख चैन से जीवन व्यतीत करते हैं।
आर्य समाजों में युवकों को जोड़ने अपनी संया को बढ़ाने और न्यून खर्च में अच्छी सफलता प्राप्त करने का आर्यवीर दल एक उत्तम प्रक्रम है। हम सब आर्यभद्र पुरुषों का कर्त्तव्य है कि आर्य समाज की प्रत्येक संस्था में आर्य वीर दल की शाखाएँ चले, सब आर्य परिवारों के बच्चे शाखाओं में अनिवार्य रूप से भाग लें तथा आर्य जन उनको उत्तम चरित्र की शिक्षा दें, तो आर्य परिवारों के बच्चों को यह नहीं कहना पड़ेगा कि मेरे दादा-नाना आर्य समाजी थे।
अजमेर के अन्दर सरकारी परीक्षाएँ होती रहती है। ऋषि भूमि परोपकारिणी सभा में अनेक युवक परीक्षा के निमित्त आकर ठहरते हैं। कोई भी युवक एक बार यह कह दे कि मैं आर्य समाज से आया हूँ, आर्य समाज से पत्र लाये न लाये, परन्तु सभी के अधिकारियों की उदारता है कि सभा द्वारा सबके भोजन-आवास की समुचित व्यवस्था की जाती है। आये हुए युवकों से कई बार पूछ लेते हैं कि क्या आप आर्य समाजी हैं तो उत्तर मिलता है- मेरे दादा या नाना आर्य समाजी थे। मैं तो आर्य समाज में नहीं जाता हॅूँ। इसके कारण होते दादा-नाना यदि वे अपने पोते-नाती को आर्य समाज में लेकर जायेंगे, आर्यवीर दल द्वारा उन्हें खेल-खेल में आर्य सिद्धान्तों का ज्ञान होगा तो आर्य परिवारों के बच्चों को यह नहीं कहना पड़ेगा कि मेरे दादा-नाना आर्य समाजी थे, मैं नहीं। -ऋषि उद्यान, अजमेर।