आर्य समाज का चौथा नियम

आर्य समाज का चौथा नियम 


           आज आर्य समाज के चौथे नियमों पर विचार करेंगे। आर्य समाज का चौथा नियम यह है - 
           "सत्य के ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।"
          मनुष्य के जीवन में सत्य का बड़ा भारी महत्व है इसलिए ऋषि दयानंद ने आर्य समाज के नियमों में सत्य पर विशेष बल दिया है।



"इदमहमनृतात् सत्यमुपैमि"

ईश्वर भी हमें आज्ञा दे रहा है कि हे  मनुष्यों! तुम असत्य को छोड़कर,  सत्य को ग्रहण करो।
यदि हम सत्य के मार्ग का अनुसरण करते हैं, सत्य के मार्ग पर बढ़ते हैं, तभी हम ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के अधिकारी बन सकते हैं, तभी ईश्वर हमारा रक्षक बनता है। हमें समस्त दुखों से, समस्त बुराइयों से, समस्त दुर्गुणों से बचा देता है।



"ऋतस्य पथि वेधा अपायि"

           अर्थात् - 
           ईश्वर सदैव सत्य के मार्ग पर चलने वाले की ही रक्षा करते हैं अतः हम सबको  दृढ़ता पूर्वक असत्य का त्याग करते हुए सत्य को ग्रहण करना चाहिए।
           इस नियम में एक शब्द आया है -  'उद्यत'  इसका अर्थ है उसी क्षण अर्थात जिस क्षण में हमें असत्य का परिज्ञान हो जाए उसी समय उसे दृढ़ता पूर्वक त्याग देना चाहिए सत्य के पथ पर बढ़ जाना चाहिए।


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