“आर्य” हिन्दू राजाओं का चारित्रिक आदर्श

वेदों में चरित्र को सबसे उत्तम आदर्श के रूप में स्थापित किया गया हैं। मानव को न केवल अपने कर्म से अपितु अपने विचारों से भी पाप-वासना से दूर रहने कि प्रेरणा दी गई हैं। वेद चरित्र कि महता का वर्णन इस प्रकार से करते हैं-


 


हे मानव इस प्रकार जीने के लिए मैं तुझे बल देता हूं। इस जीवनरूपी रथ पर चढ़कर उन्नति को प्राप्त कर और संसार में अपने चरित्र के बल पर प्रशंसित होकर दूसरों को भी प्रेरणा दे।


 


मानव तुम अपने आत्मबल के साथ इस शरीर, मन और इंद्रियों के शासक हो। अपने सर्वश्रेष्ठ मित्रों के साथ तुम पाप वासना का त्याग करने के लिए तैयार हो जाओ। इस पाप के विरूद्घ संग्राम को जीतकर अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करो।


 


वेदों के इस महान सन्देश को प्राचीन काल से अनेक आर्य राजा अपने जीवन का अंग बनाया। मध्य काल में जब देश पर इस्लामिक राज्य स्थापित हो गया था तब पतन का दौर आरम्भ हो गया और नारी जाति को जोर-जबर्दस्ती से मुस्लिम शासकों द्वारा अपने हरम कि शोभा बनाया जाने लगा। कुछ उदहारण हमारे इस कथन कि पुष्टि करते हैं।


 


सभी मुग़ल शासकों में अकबर को सबसे न्यायप्रिय बताया जाता हैं, अगर सभी मुस्लिम शासकों का उदहारण देंगे तो एक पूरी पुस्तक बन जायेगी इसलिए केवल अकबर का ही वर्णन करते हैं।


 


१. चौलागढ़, जिला नरसिंघपुर कि छोटी सी रियासत पर अकबर के सरदार आसफ खान ने हमला किया। वहाँ के राजा बीर नारायण ने वीरता से युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हो गये। महल कि सभी स्त्रियों ने सामूहिक जौहर में भाग लिया और जब चार दिन पश्चात जौहर कक्ष को खोला गया तो उसमें से दो स्त्रियाँ जीवित निकली, सयोग से उनके ऊपर लकड़ी का एक तख़्त गिर गया था जिससे उनकी प्राण रक्षा हो गई। उनमें से एक रानी दुर्गावती कि बहन कमलावती थी और दूसरी राजा कि नववधु थी। दोनों को अकबर के हरम में भिजवा दिया गया।


 


(Ref -Page 72 Akbar the Great Mogul - Vincent Smith )


 


 


 


२. अकबर के हरम में ५,००० औरतें थी। (Ref -Page 359  Akbar the Great Mogul - Vincent Smith )


 


पाठक स्वयं सोच सकते हैं कि अकबर द्वारा ये ५००० औरतें किस प्रकार से जोर जबर्दस्ती द्वारा हिन्दू एवं गैर हिन्दू घरों से एकत्र कि गई थी। जहाँगीर ने अपने शासन काल में इनकी संख्या बड़ा कर ६००० कर दी थी।


 


 


 


जहां एक और मुस्लिम शासको ने हिन्दू लड़कियों से अपने हरम भरने कि हौड़ लगा रखी थी वही दूसरी और हिन्दू राजाओं जैसे महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, वीर दुर्गा दास राठोड़ ने अपने चरित्र के आदर्श से संसार के समक्ष एक ऐसा अनुसरणीय उदहारण स्थापित किया था जिसकी आज पूरे विश्व को नारी जाति के सम्मान के लिए आवश्यकता हैं। यह गौरव और मर्यादा उस कोटि के हैं ,जो की संसार के केवल सभ्य और विकसित जातियों में ही मिलते हैं। महाराणा प्रताप के मुगलों के संघर्ष के समय स्वयं राणा के पुत्र अमर सिंह ने विरोधी अब्दुर रहीम खानखाना के परिवार की औरतों को बंदी बना कर राणा के समक्ष पेश किया तो राणा ने क्रोध में आकर अपने बेटे को हुकुम दिया की तुरंत उन माताओं और बहनों को पूरे सम्मान के साथ अब्दुर रहीम खानखाना के शिविर में छोड़ कर आये एवं भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न करने की प्रतिज्ञा करे। खानखाना महाराणा प्रताप के चरित्र गुण से अत्यंत प्रभावित हुआ एवं उसने महाराणा कि प्रशंसा में ये शब्द कहे


 


 


 


धर्म रहसि रहसि धारा खास जारो खुरसन


 


अमर विशम्बर उपराओं राखो न जो रण


 


 


 


(Ref. Maharana Pratap - Dr Bhawan Singh Rana  Page 85 ,86 )


 


 


 


ध्यान रहे महाराणा ने यह आदर्श उस काल में स्थापित किया था जब मुग़ल अबोध राजपूत राजकुमारियों के डोले के डोले से अपने हरम भरते जाते थे। बड़े बड़े राजपूत घरानों की बेटियाँ मुगलिया हरम के सात पर्दों के भीतर जीवन भर के लिए कैद कर दी जाती थी। महाराणा चाहते तो उनके साथ भी ऐसा ही कर सकते थे पर नहीं उनका आर्य स्वाभिमान ऐसी उनहें कभी नहीं करने देता था।


 


 


 


 


 


 


 


औरंगजेब के राज में हिन्दुओं पर अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था। धर्मान्ध औरंगजेब के अत्याचार से स्वयं उसके बाप और भाई तक न बच सके , साधारण हिन्दू जनता की स्वयं पाठक कल्पना कर सकते हैं। औरंगजेब की स्वयं अपने बेटे अकबर से किसी बात को लेकर अनबन हो गयी थी। इसी कारण उसका बेटा आगरे के किले को छोड़कर औरंगजेब के प्रखर विरोधी राजपूतों से जा मिला था जिनका नेतृत्व वीर दुर्गादास राठोड़ कर रहे थे।


 


 


 


कहाँ राजसी ठाठ बाठ में किलो की शीतल छाया में पला बढ़ा अकबर , कहाँ राजस्थान की भस्म करने वाली तपती हुई धुल भरी गर्मियाँ। शीघ्र सफलता न मिलते देख संघर्ष न करने के आदि अकबर एक बार राजपूतों का शिविर छोड़ कर भाग निकला। पीछे से अपने बच्चों अर्थात औरंगजेब के पोता-पोतियों को राजपूतों के शिविर में ही छोड़ गया। जब औरंगजेब को इस बात का पता चला तो उसे अपने पोते पोतियों की चिन्ता हुई क्यूंकि वह जैसा व्यवहार औरों के बच्चों के साथ करता था कहीं वैसा ही व्यवहार उसके बच्चों के साथ न हो जाये। परन्तु वीर दुर्गा दास राठोड़ एवं औरंगजेब में भारी अंतर था। दुर्गादास की रगो में आर्य जाति का लहू बहता था। दुर्गादास ने प्राचीन आर्य मर्यादा का पालन करते हुए ससम्मान औरंगजेब के पोता पोती को वापिस औरंगजेब के पास भेज दिया जिन्हें पाकर औरंगजेब अत्यंत प्रसन्न हुआ। वीर दुर्गादास राठोड़ ने इतिहास में अपना नाम अपने आर्य व्यवहार से स्वर्णिम शब्दों में लिखवा लिया।


 


 


 


(Ref. The House of Marwar Published in 1994 ,Dhananjay Singh page 94 )


 


 


 


वीर शिवाजी महाराज का सम्पूर्ण जीवन आर्य जाति की सेवा,रक्षा, मंदिरों के उद्धार, गौ माता के कल्याण एवं एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के रूप में गुजरा जिन्हें पढ़कर प्राचीन आर्य राजाओं के महान आदर्शों का पुन: स्मरण हो जाता हैं। जीवन भर उनका संघर्ष कभी बीजापुर से, कभी मुगलों से चलता रहा। किसी भी युद्ध को जितने के बाद शिवाजी के सरदार उन्हें नजराने के रूप में उपहार पेश करते थे। एक बार उनके एक सरदार ने कल्याण के मुस्लिम सूबेदार की अति सुन्दर बीवी शिवाजी के सम्मुख पेश की। उसको देखते ही शिवाजी महाराज अत्यंत क्रोधित हो गए और उस सरदार को तत्काल यह हुक्म दिया की उस महिला को ससम्मान वापिस अपने घर छोड़ आये। अत्यंत विनम्र भाव से शिवाजी उस महिला से बोले ” माता आप कितनी सुन्दर हैं , मैं भी आपका पुत्र होता तो इतना ही सुन्दर होता। अपने सैनिक द्वारा की गई गलती के लिए मैं आपसे माफी मांगता हूँ”। यह कहकर शिवाजी ने तत्काल आदेश दिया की जो भी सैनिक या सरदार जो किसी भी ऊँचे पद पर होगा अगर शत्रु की स्त्री को हाथ लगायेगा तो उसका अंग छेदन कर दिया जायेगा।


 


(Ref Page No. 4 Shivaji the Great Published in 1940 -Bal Krishna )


 


 


 


कहाँ औरंगजेब की सेना के सिपाही जिनके हाथ अगर कोई हिन्दू लड़की लग जाती या तो उसे या तो अपने हरम में गुलाम बना कर रख लेते थे अथवा उसे खुलेआम गुलाम बाज़ार में बेच देते थे और कहाँ वीर शिवाजी का यह पवित्र आर्य आदर्श।


 


 


 


इतिहास में शिवाजी की यह नैतिकता स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई हैं।


 


 इन ऐतिहासिक प्रसंगों को पढ़ कर पाठक स्वयं यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं की महानता और आर्य मर्यादा व्यक्ति के विचार और व्यवहार से होती हैं। धर्म की असली परिभाषा उच्च कोटि का पवित्र और श्रेष्ठ आचरण हैं। धर्म के नाम पर अत्याचार करना तो केवल अज्ञानता और मुर्खता हैं।


डॉ विवेक आर्य


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