आप क्या करते हैं?

आप क्या करते हैं?



      प्रत्येक कार्य के दो पक्ष होते हैं। एक पक्ष अपने लिए एक पक्ष दूसरी के लिएअपने पक्ष के लिए तो सभी काम करते हैं, साधन जुटाते हैं, इस काम में प्रायः सभी का मस्तिष्क खूब चलता है।


       किन्तु दूसरे पक्ष के लिए काम करने वाले विरले ही होते हैं। जो दूसरों के लिए कुछ करे, वह हमारी दृष्टि में देवता है।


       महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज के ९वें नियम में बताया है कि-


       प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिए किन्तु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।


       मनुष्य जाति एक है। इसमें दो भेद हैं-असुर और 'आर्य'।


       -जो अपने लिए ही जीता है वह 'असुर' है।


       -जो अपने साथ ही दूसरों के लिए भी कार्य करता है वह है 'आर्य'अब आप स्वयं सोचिए कि क्या आप दूसरों के लिए कुछ करते हैं ?


       -क्या कभी किसी अनजान गरीब बीमार की आपने सेवा की है ?


       -क्या आप किसी और की मुसीबत में काम आए हैं ?


       -क्या आपने किसी का दु:ख-दर्द बांटा है ? यदि हाँ, तो ठीक, यदि उत्तर 'न' में हो, तो फिर बताइए कि क्या आप 'असुर' बनना पसन्द करेंगे ?


       यज्ञ, धर्म, दान, सब दूसरों की, कसौटी पर ही परखे जा सकते हैं। मेरा है वह 'इदं न मम्'' मेरा नहीं है। मैं तो केवल प्रबन्ध करता हूँ। 


       करोड़ों रुपया आपके पास है। पर क्या वह आपके साथ जाएगा कोठी-बंगला, कार, आभूषण, वस्त्र क्या धरती से जाते हुए, आप साथ लेकर जाएँगे ?


       स्वार्थ में अंधे होकर चलते हुए हम जीवन का सत्य भूल चुकेजाने की कल्पना भी कभी हमने नहीं की। परिणाम आपके सामने है। जब जाना पड़ता है तो कितना बोझ होता है, जाने वाले के मन पर ?


       हमारा आग्रह है कि अपना चिन्तन वास्तविकता की पृष्ठभमि पर बनाओ। कुछ अपने लिए करो, कुछ दूसरों के लिए करोफिर देखो, आपके जीवन में कैसी रसधार बहती है।


       


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