आध्यात्मिक और सामाजिक कर्म

आध्यात्मिक और सामाजिक कर्म



      "आध्यात्मिक और सामाजिक कर्म दो प्रकार की भलाई के, अथवा भले काम करने होते हैं एक तो वे हैं जो मनुष्य करता तो अपने लिए है पर उससे सर्व साधारण को लाभ होता है। दूसरे वे हैं जो मनुष्य दूसरों की भलाई के लिए करता है उसे स्वयं लाभ हो या न हो। ऐसे भलाई के काम सीमित होते हैं और पहली प्रकार के असीमित । प्रसन्नता और शान्ति दोनों में होती है। पहले में शान्ति शाश्वत तक ले जानेवाली होती है दूसरे में कुछ काल तक की। पहले प्रकार के शुभ कार्य करनेवालों पर परमात्मा की और उसकी प्यारी आत्माओं की दया होती है। दूसरी प्रकारवाले कभी अपने संस्कारों से, कभी वायुमण्डल के प्रभाव से प्रभावित होकर मनुष्य शुभ काम करते हैं। प्रेम और अहिंसा, तप, सत्य, भक्ति ये शुभ कार्य मनुष्य अपने ही लिए करता है जिनसे सर्वसाधारण को लाभ प्राप्त हो जाता है और यह स्थायी शाश्वत शान्ति को दिलानेवाली है। और दूसरे उपकार के यज. सवा, दान-दुःखा आताथ सवा आदि सब . दूसरों की भलाई के लिये हैं और दूसरों की भाव से ही किये जाते हैं।


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