पृष्टं यज्ञेन कल्पताम्
पृष्टं यज्ञेन कल्पताम्
इस मन्त्र में प्रत्येक अङ्ग को यज्ञ के अर्पण करने और यज्ञ से सामर्थ्य पाने को प्रार्थना है । “पृष्टं" का अर्थ यही वीर्य है। वीर्य किस प्रकार यज्ञ के काम आवे ? वीर्य से उत्पन्न की हुई सन्तान यज्ञ, ईश्वरअर्पण हो।