ब्रह्मस्तोत्र अर्थात् वैदिक-सन्ध्या

ब्रह्मस्तोत्र अर्थात् वैदिक-सन्ध्या


अथ सन्ध्या-विधि


          द्विज मात्र के लिए जैसे कि अन्नादि आहार नित्य प्रति आवश्यक है, वैसे ही दो काल (सायं प्रातः) सन्ध्या उपासना और गायत्री का जाप अत्यन्त करणीय है महाराज मनुजी का कथन है कि जो दोनों काल सन्ध्या नहीं करता, वह शूद्र है इसलिए प्रत्येक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य को नीचे लिखी पूर्ण विधि के अनुसार दोनों समय सन्ध्या करनी चाहिए ।


         विधि :- प्रातःकाल चार घड़ी रात रहे उठ कर नदी की ओर जा जंगल में मल त्याग, नदी में अथवा किसी सरोवर के स्वच्छ जल में स्नान कर एकान्त में बैठ, मन को एकाग्र करना चाहिए,


और संसार के झगड़ों को उस समय के लिए भुला देना चाहिए। जब मन स्थिर हो जाये तो ईश्वर-स्तुति के एक दो भजन गान के बाद प्राणायाम करे, फिर गायत्री-मन्त्र पढ़ कर चोटी के बिख हुए बाल बांध देने चाहिए तत्पश्चात् 'ओं शन्नो देवी' से तीन आचमन करने चाहियें। फिर इन्द्रियस्पर्श और मार्जन-मंत्र से अब अंगों पर जल छिड़कने के पीछे प्रत्येक मन्त्र का अर्थ विचार क सन्ध्या समाप्त करनी चाहिए, और गायत्री का जाप करते हुए सूर्य के दर्शन करने चाहियें । इसी प्रकार सायंकाल को तारागण के दर्शनों के साथ सन्ध्या समाप्त करनी चाहिए


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