यक्ष-धर्मराज संवाद


यक्ष-धर्मराज संवाद


(महाभारत से)


       प्रश्न- प्रसन्न कौन है ?


      उत्तर- पञ्चमेऽहनि षष्ठे वा शाकं पचति स्वगृहे।


               अनृणी चाप्रवासी च स वारिचर मोदते


      अर्थ-जिसके घर में चाहे पांचवें या छठे दिन. ही सब्जी बनती है परन्तु जो किसी का ऋणी (करजाई) नहीं है तथा न ही वह रोटी के लिए पराधीन हुआ परदेश में रहता है, वही सुखी है।


      प्रश्न-आश्चर्य क्या है ?


      उत्तर-अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम्।


              शेषाः जीवितुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतःपरम्॥


      अर्थ-प्रतिदिन प्राणी मरते हैं। बाकी रहे प्राणी उन्हें देखकर भी सदा जीवित रहने की इच्छा करते हैंइससे बड़ा आश्चर्य और क्या होगा


       प्रश्न-धर्म, अर्थ, काम परस्पर विरोधी हैं। इन नित्य विरोधियों का एक स्थान पर संगम कैसे होता है ?


      उत्तर-जब धर्मात्मा पुरुष और धर्मप्रिय पत्नी आपस में एक दूसरे के अनुकूल व्यवहार करते हैं, तब धर्म, अर्थ, काम का संगम हो जाता है। जो


      प्रश्न-दम्भ क्या है ?


      उत्तर-दिखावे के लिए किया धर्म दम्भ (छल) है।


      प्रश्न-उत्तम स्तान कौन सा है ?


      उत्तर-मन के मल का त्याग उत्तम स्नान है।


      प्रश्न-श्राद्ध का काल क्या है ?


      उत्तर-जब उत्तम ब्राह्मण (विद्वान् और परोपकारी उपदेश करने वाला) मिले वही श्राद्ध का समय है। काम , माना..


      प्रश्न-साधु कौन है और असाधु कौन ?


      उत्तर-जो सब जीवों के हित के लिए जिए वही साधु और जो दयाहीन हो वह असाधु।


       प्रश्न-ब्राह्मण को दान क्यों दिया जाता है ? ..


       उत्तर-ब्राह्मण को धर्म (न्याय, परोपकार और विद्या के प्रचार) के लिए दान दिया जाता है।


       प्रश्न-देवकृत सखा या मित्र कौन है ?


       उत्तर--पत्नी देवकृत श्रेष्ठ मित्र है।


       प्रश्न-अमृत क्या है ?


       उत्तर-गौओं का दूध अमृत है। .. .


       प्रश्न--भोगो को भोगता हुआ बुद्धिमान् कौन है ?


      उत्तर-देवता (विद्वान्), अतिथि (अचानक घर में आया हुआ सदुपदेशक) तथा भृत्य (अपने अधीन व आश्रित लोग) को संतुष्ट करके जो भोगता है वह बुद्धिमान् है। अर्थात् जो इनको भोजन, वस्त्र से प्रसन्न रखता है, वही स्वयं भोग भोगता हुआ बुद्धिमान् है।


      प्रश्न-लज्जा क्या कहाती है ?


      उत्तर-पापाचार से हट जाना ही लज्जा है।


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