यज्ञादि शुभ कर्म मिलकर करें
यज्ञादि शुभ कर्म मिलकर करें
पत्नी सहधर्मिणी है। सभी धर्म कार्य, दान यज्ञादि शुभ कर्म, साधु-सत्संग देशाटन समाज-सेवा आदि दोनों मिलकर साथ-साथ करें। इसीलिये यज्ञ का प्रतीक यज्ञोपवीत भी पति-पत्नी दोनों के 'पास होना आवश्यक है। बीच के अन्धकार युग में जब नारी को 'स्त्री शूद्रो नाधीयताम्' कहकर इन पवित्र अधिकारों से वञ्चित किया गया तब से पुरुष ही तीन तारों की जगह (तीन अपने तीन पत्नी के मिलाकर) छः तारों का यज्ञोपवीत पहनने लगे। यह विषमता और अन्याय दूर होकर मातृ शक्ति का समादर होना चाहिये।