यब परिक्रमा एवं विविध यज्ञ

यब परिक्रमा एवं विविध यज्ञ


        'यज्ञ' वैदिक संस्कृति का मूलाधार है। यज्ञमयता अर्थात् परार्थ जीवन लोक हितार्थ या जन सेवार्थ जीवन के शिक्षण का विधान जीवन के प्रथम क्षण-गर्भाधान संस्कार से लेकर अन्तिम क्षण-अन्त्येष्टि संस्कार तक किया गया है- फिर विवाह-संस्कार जो परम पवित्र ज्येष्ठाश्रम-गृहस्थाश्रम का प्रवेश द्वार है, उसमें यज्ञ भावना की प्रधानता हो, यह स्वाभाविक ही हैविवाह संस्कार में जहाँ जया होम राष्ट्रभृत होम आदि यज्ञों द्वारा जीवन में जय-विजय को वरण करने और गृहस्थ धर्म द्वारा राष्ट्र धर्म को शक्तिमान् बनाने की भावना नव दम्पत्ति को दी जाती है वहाँ यज्ञ की सात : परिक्रमाओं द्वारा गृहस्थ जीवन में यज्ञ-भावना को सदैव आगे रखने का शिक्षण दिया गया है


यज्ञ भावना- "यज्ञो वै विष्णुः वै राष्ट्रः" तो यज्ञ नाम राष्ट्र या समाज का हैअपने व्यक्तिगत हितों को राष्ट्र या समाज के लिये बलिदान करना ही यज्ञ-भावना है। यह यज्ञभावना ही मनुष्य को अन्य पशु आदि जन्तुओं से अलग करती है।


गृहस्थ जीवन में यज्ञ-भावना के पालनार्थ ही ऋषियों की योजनानुसार आर्य राम वन को जाते हैं और वहाँ व्रत लेते हैं-   "निसिचर हीन करौं महि भुज उठाइ पन कीन्ह"


         सीता जी इस क्षात्र-धर्म रुप यज्ञीय व्रत में राम की सहायिका हैं। इस यज्ञीय भावना से ही प्रेरित हो महाराणा प्रताप व्रत लेते हैं"यवन को कभी सिर न झुकाऊँगा।" महारानी इस क्षात्रधर्म रुप व्रत में सहायिका हैं। इसी यज्ञ-भावना से गृहस्थी भामाशाह वैश्य धर्म के पालनार्थ अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति महाराणा प्रताप के चरणों में रखकर भारतीय इतिहास में उदारता और दानशीलता के गौरवपूर्ण अध्याय को जोड़ते हैं।


         अब ब्राह्मण धर्म पालन के रुप में गार्हस्थ्य जीवन में यज्ञभावना के कुछ चित्र देखिये-


         कैय्यट ऋषि सपत्नीक अज्ञान-नाश के व्रत में दीक्षित हो साहित्य साधना में लगे हैं। सम्राट चरणों में उपस्थित हुए हैंनिवेदन कर रहे हैं- भगवन कोई सेवा ? ऋषि स्व-पत्नी की ओर संकेत करते हैं- राजन. देवी से ज्ञात करें। ऋषि-पत्नी कहती हैं- राजन ज्ञआज भर के लिये है। कल प्रभु देंगेहमें कुछ नहीं चाहिये। सम्राट आग्रह करते हैं- राजन हमारी सेवा यही है कि आप हमें फिर आकर तंग न करें। राजा के पुनः आग्रह करने पर ऋषि-पत्नी को आज्ञा मिलती है-देवि ! चटाई लपेटो, अब अन्यत्र चलकर साधना करेंगे और इस यज्ञीय साधन में ऋषि-पत्नी कितनी प्रसन्नता से सहयोग देती हैं।


         माघ कवि की दानशीलता प्रसिद्ध हैवह सभी कुछ दान कर डालते हैं। इस अवस्था में एक निर्धन ब्राह्मण द्वार खटखटाता है। कन्या को दहेज में देने को उसे कुछ तो चाहिये ही। पत्नी सो रही है। माघ कवि चुपके से एक कंगन उतारकर देना चाहते हैंपत्नी जाग जाती है, दूसरे कंगन को उतारकर देती हुई कहती हैंदेव ! अधूरा दान नहीं दो।


         राजकुमारों के साथ ही द्रोणपुत्र अश्वत्थामा भी पढ़ते हैं। अश्वत्थामा भी माता का अञ्चल पकड़ कर दूध के लिये आग्रह करता है ब्राह्मणी आटा घोलकर पुत्र को पिलाती हैपति से वह कोई शिकायत नहीं करती, कहीं पुत्र-मोह में पतिदेव इस ब्राह्मण धर्म रुप यज्ञीय साधना से विचलित न हो जावें अथवा पति को घ. के अभावों की अनुभूति होकर कहीं वे पथ भ्रष्ट न हो जावें ? मैत्रेयी और कात्यायनी दो पत्नी हैं, महर्षि याज्ञवल्क्य की आज ऋषि वानप्रस्थ की दीक्षा लेने लगे हैंअपनी सम्पत्ति बराबर2 दोनों पत्नियों को देने लगे हैंमैत्रेयी पूछती है-


         'भगवन ! यदि यह धन-धान्य से परिपूर्ण सारी पृथ्वी केवल मेरे ही अधिकार में आ जाय तो क्या मैं उससे किसी प्रकार अमर हो सकती हूँ ?' याज्ञवल्क्य ने कहा- 'नहीं, भोग-सामग्रियों से सम्पन्न मनुष्यों का जैसा जीवन होता है, वे लौकिक दृष्टि से जितने सुख और सुविधा में रहते हैं, वैसा ही तुम्हारा भी जीवन हो जायेगा। किन्तु धन से कोई अमर हो जाय, उसे अमृतत्व की प्राप्ति हो जाय, इसकी आशा कदापि नहीं है।' मैत्रेयी बोली- 'येनाहं नामृतस्यां कि महं तेन कुर्याम्' भगवन् ! जिससे मैं अमर नहीं हो सकती, उसे लेकर क्या करूँगी ? यदि भौतिक धन से ही वास्तविक सुख मिलता तो आप इसे छोड़कर क्यों जाते ? आप ऐसी कोई वस्तु अवश्य जानते हैं, जिसके सामने यह धन, यह गृहस्थी का सारा सुख तुच्छ प्रतीत होता है। अत: मैं भी उसी को जानना चाहती हूँ। 'य देव भगवान् वेद, तदेव मे ब्रूहि'-- केवल जिस वस्तु को श्रीमान् अमृतत्व का साधन जानते हैं, उसी का मुझे उपदेश करें। (नारी कुल-भूषण मैत्रेयी आप धन्य हो !)


        गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी व्यवहार में यज्ञमयता कं आदर्श से अनुप्राणित ये सभी चित्र कितने पूर्ण और पवित्र हैं। ये सभी चित्र वैदिक स्वर्ग का स्वरुप बताते हैं युगों के बाद भी इन चित्रों की चटक फीकी या धूमिल पड़ना तो दूर और भी अधिक दमक रही है तथा दाम्पत्य जीवन आरम्भ करने वालों का मार्ग दर्शन कर रही है ।


 


 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।