दयानन्द के शिर छेद का यत्न
दयानन्द के शिर छेद का यत्न (महर्षि दयाननद सरस्वती)
यहाँ भी स्वामीजी को समाप्त करने का षड्यन्त्र किया गया। दो वैरागी गङ्गा सेठाकर गंगासह के पास प्राय और कहने लगे हम इस गप्पाष्टक निन्द का सिर काटना चाहते हैं, अतः पाप हमें अपना खडग दे दीजिए।" कर महाराज का उपदेश सुन चुका था और उनका श्रद्धालु बन गया था। उसने रवैरागियों को दुत्कारा और कहा-वे तो बड़े महात्मा हैं । दुष्टो। यदि तुमने फिर यह बात मुंह से निकाली तो मैं तुम्हाराही सिर काट लूगा।" उन्हें धिक्कार और फटकार कर वह ठाकुर दो-चार साथियों को साथ ले और शस्त्रों से सुसज्जित हो स्वामीजी के पास पहुँचा और उन्हें वैरागियों को दुष्ट लोला कह सुनाई। स्वामीजी ने उदासीन भाव से कहा--"उनकी क्या सामर्थ्य है जो मेरी हत्या कर सकें।" परन्तु ठाकुर महाशय के चित्त में चिन्ता वैसी ही बनी रही, अतः वह स्वामीजी के निषेष करने पर भी रात भर पहरा देता रहा।