व्यवहार


व्यवहार


       मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां


भावनातश्चित्तप्रसादनम्। (योगदर्शन)


      अर्थ-जो सुखी हैं उनके प्रति मित्रता की भावना रखो। उनके बल, पराक्रम, सम्मान और सम्पत्ति पर जलो मत। जो दु:खी हैं उनके प्रति दयादृष्टि रखो। पीड़ितों की पीड़ा हरण करो। असहाय को सहारा दो। जो पुण्यात्मा (शुभ कर्म करने वाले) हैं उनके प्रति प्रसन्नता रखो। उनकी शोभा देखकर तथा प्रशंसा सुनकर आनन्दित होवो। जो पापी (दुष्ट कर्म करने वाले) हैं उनके प्रति उपेक्षा भाव रखो। उनसे न प्रेम रखो और न बैर रखो। उपरोक्त व्यवहार चित्त को शुद्धि और प्रसन्नता देने वाला है।


      आपसी व्यवहार-महर्षि दयानन्द के शब्दों में उनकी पुस्तक 'व्यवहारभानु' से-सरकार और प्रजा को कैसे बर्तना चाहिये-सरकार प्रजा के लिए अच्छे माता पिता के समान और प्रजा सरकार से अच्छी सन्तान की तरह वर्तकर आपस में सुख और आनन्द बढ़ावें।


      पड़ोसियों को आपस में कैसे रहना चाहिये-पड़ोसी के साथ ऐसा बर्ताव करें कि जैसा अपने शरीर के लिए करते हैं। मित्र के लिए भी वैसा ही कर्म करें ।


        स्वामी-सेवक कैसे व्यवहार करें-स्वामी सेवक के लिए ऐसा व्यवहार करें कि जैसा अपने हाथ, पैर आदि अंगों की रक्षा के लिए करते हैं। सेवक स्वामियों के लिए ऐसे वर्ते कि जैसे अन्न, जल, वस्त्र और घर आदि शरीर की रक्षा के लिए होते हैं।


मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा।


सम्यञ्चः सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया॥ (अथर्ववेद)


      अर्थ-भाई भाई से द्वेष न करे, बहिन बहिन से द्वेष न करे। सब एक दूसरे के अनुकूल, एक चित्त और एक उद्देश्य वाले होकर एक दूसरे के प्रति कल्याणकारी और सुखप्रद रीति से मधुर बोला करें ।


क्रीत्वा विक्रीय वा किञ्चिद्यस्येहानुशयो भवेत्।।


सोऽन्तर्दशाहात् तद् द्रव्यं दद्यात् च एव आददीत वा॥ (मनुस्मृति)


       अर्थ-किसी वस्तु को खरीदकर अथवा बेचकर अगर किसी व्यक्ति को मन में पश्चात्ताप अनुभव हो तो वह दस दिन के अन्दर उस वस्तु को लौटा दे या लौटा ले।


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।