विनायक दामोदर सावरकर छह स्वर्णिम पृष्ठ

विनायक दामोदर सावरकर छह स्वर्णिम पृष्ठ



        भारतीय वाङ्मय मे सावरकर साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है। मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण हथेली पर रखकर जूझनेवाले महान् क्रांतिकारी; जातीभेद, अस्पृश्यता, अंधश्रद्धा जैसी सामाजिक बुराईयों को समूल नष्ट करने का आग्रह रखनेवाले स्वातंत्र्यवीर  सावरकर ने इस ग्रन्थ में भारतीय इतिहास पर विहंगम दृष्टि डाली है। विद्वानों में सावरकर लिखित इतिहास जितना प्रामाणिक और निष्पक्ष माना गया है उतना अन्य लेखकों का नहीं।


 
     प्रस्तुत ग्रन्थ 'छह स्वर्णिम पृष्ठ' में हिन्दू राष्ट्र के इतिहास का प्रथम स्वर्णिम पृष्ठ रहे यवन-विजेता सम्राट् चंद्रगुप्त की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ, यवनांतक सम्राट् पुष्यमित्र की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ भारतीय इतिहास का द्वितीय स्वर्णिम पृष्ठ, सम्राट् विक्रमादित्य की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ इतिहास का तृतीय स्वर्णिम पृष्ठ है। हूणांतक राजा यशोवर्मा के पराक्रम से उद्दीप्त पृष्ठ इतिहास का चतुर्थ स्वर्णिम पृष्ठ, मुस्लिम शासकों के साथ निरंतर चलते संघर्ष और उसमें मराठों द्वारा मुस्लिम सत्ता के अंत को हिंदू इतिहास का पंचम स्वर्णिम पृष्ठ कह सकते हैं और अंतिम स्वर्णिम पृष्ठ है अंग्रेजी सत्ता को उखाडकर स्वातंत्र्य प्राप्त करना।


 
      विश्वास है, स्वातंत्र्यवीर सावरकर से पूर्व ग्रन्थों की भाँति इस ग्रन्थ का भी भरपूर स्वागत होगा। सुधी पाठक भारतीय इतिहास का सम्यक् रूप में अध्ययन कर इतिहास के अनेक अनछुए पहलुओं और घटनाओं से परिचित होंगे।


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