विकासवाद


                 डार्विन ने शिक्षा दी कि मनुष्य, योनि-विकास के द्वारा, पशु से मनुष्य बना है। उसने योनि-विकास का क्रम इस प्रकार बतलाया(१) प्रथम अमीवा आदि एक घटक जन्तु हुए। (२) फिर आदिम मत्स्य। (३) फिर फेफड़े वाले मत्स्य। (४) फिर सरीसृप, जल मेंढक आदि जलचारी जन्तु। (५) फिर स्तन्यं जन्तु। (६) फिर अण्डज-स्तन्य। (७) फिर पिण्डज अजरायुज-स्तन्य। (८) फिर जरायुज स्तन्य, (९) फिर किम्पुरुषबन्दर वनमानुष पतली नाक वाले। वनमानुषों में पहले पूँछ वाले कुक्कुटाकार, फिर बिना पूंछ वाले नराकार, फिर इन्हीं नराकार वनमानुषों की किसी शाखा (लुप्त कड़ी) से जिस का अभी तक ज्ञान नहीं गूंगे मनुष्य, फिर अन्त में उन्हीं से बोलने वाले मनुष्य उत्पन्न हुए।


                डार्विन ने इस योनि-विकास के साथ ही मानसिक विकास की भी कल्पना करते हुए प्रकट किया है कि मनुष्य में बिना किसी निमित्त पुरुष के स्वतः क्रमशः ज्ञान की वृद्धि हो जाती है।



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