विद्याओं की प्राप्ति

       


         प्र.) कैसे-कैसे मनुष्य सब विद्याओं की प्राप्ति कर और करा सकते हैं।


        उ.)       ब्रह्मचर्यस्य च गुणं श्रृणु त्वं वसुधाधिप।


                 आजन्ममरणावस्तु ब्रह्मचारी भवेदिह।।1।।


 


                 न तस्य किञ्चिदप्राप्यमिति विद्धि नराधिप।


                 बह्वयः कोट्यस्त्वृषीणां च ब्रह्मलोके वसन्त्युत।2।


 


                 सत्ये रतानां सततं दान्तानामूर्ध्वरेतसाम्।


                 ब्रह्मचर्यं दहेद्राजन् सर्वपापान्युपासितम्।। 3 ।।


 


        भीष्म जी युधिष्ठिर से कहते हैं कि-हे राजन्! तू ब्रह्मचर्य के गुण सनजो मनुष्य इस संसार में जन्म से लेकर मरणपर्यन्त ब्रह्मचारी होता है1उसको कोई शुभगुण अप्राप्त नहीं रहता ऐसा तू जान कि जिसके प्रताप से अनेक क्रोड़ ऋषि ब्रह्मलोक अर्थात् सर्वानन्दस्वरूप परमात्मा में वास करते और इस लोक में भी अनेक सुखों को प्राप्त होते हैं।।2 ।।


       जो निरन्तर सत्य में रमण, जितेन्द्रिय, शान्तात्मा, उत्कृष्ट, शुभगुण स्वभावयुक्त और रोगरहित पराक्रमसहित शरीर, ब्रह्मचर्य अर्थात वेदादि आर सत्य शास्त्र और परमात्मा की उपासना का अभ्यास कर्मादि करते हैं उनके व सब बरे काम और दुःखों को नष्ट कर सर्वोत्तम धर्मयुक्त कर्म और सब सुखा की प्राप्ति करनेहारे होते हैं। और इन्हीं के सेवन से मनष्य उत्तम अध्यापक और उत्तम विद्यार्थी हो सकते हैं।।3।।


 


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