वेदनिंदक और काफिरों को मारने की आज्ञायें

।।ओ३म्।।


वेदनिंदक और काफिरों को मारने की आज्ञायें


- कार्तिक अय्यर


अनेक लोग इंटरनेट,फेसबुक, वॉटसप और वीडियोज़ में ये प्रचार करते हैं कि देखो, अथर्ववेद में लिखा है कि वेदनिंदक को मारो,काटो जलाओ आदि-आदि। यह आक्षेप करने वाले आमतौर पर "शांतिप्रिय कौम" के लोग हैं। जिन लोगों ने तलवार के बलपर दुनिया में इस्लाम का प्रचार किया, निर्दोषों को मार काट कर मुसलमान बनाया, लूट पाट और बलात्कार के कांड किये- वही हिंदुओं को "भगवा आतंकवादी" घोषित करने हेतु यह दुष्प्रचार करते हैं।


हम इस लेख में ये विचार करेंगे कि अथर्ववेद में क्या सचमुच हिंदू धर्म को न मानने वालों को बलात् मारने-काटने की आज्ञा है? दरअसल अथर्ववेद १२/५/६२ का प्रमाण देते हैं। हम इस १२ वें कांड सूक्त ५ के इन्हीं मंत्रों के भाष्य और भावार्थ को रखते हैं,ताकि इस दुष्प्रचार का भंडाफोड़ हो।


( हमने चित्रों में पं क्षेमकरणजी का भाष्य लगा रखा है)
अवलोकन कीजिये-


मंत्र ६२- कहा है कि सज्जन लोग सदा अधर्मियों के दंड देने में तैयार रहें।
मंत्र-६०- भावार्थ- वेदविरुद्ध आचारण करने वाले को यथायोग्य दंड हो
मंत्र-६४- ब्रह्मचारियों के हानिकारक- यानी ब्रह्मज्ञ विद्वानों पर हानि करने वाले को राजा व्यवस्था के अनुसार दंड देने की बात कर रहा है।
मंत्र-६६-६७- ब्रह्मज्ञों के हानिकारक, विद्वानों को सताने वाले वेदविरोधी दुष्टाचारी को राजा प्रचंड दंड दे।


मंत्र-६५- में "कृतागसः" यानी अपराध करने वालों को दंडित करने का स्पष्ट उल्लेख है।
वक्तव्य-


क्यों जी! अब आपको इन मंत्रों पर क्या दिक्कत है? यहां पर स्पष्ट रूप से वेद विरोधी, दुष्ट कर्म करने वालों को ,जो विद्वानों को तंग करते हैं ब्रह्मज्ञ लोगों पर अत्याचार करते हैं- उनको न्याय व्यवस्था के अनुसार कड़ा दंड देने के आदेश हैं।
यहां पर यह नहीं कहा गया है कि जो हिंदू नहीं है केवल उसी को मारो।यहां तो अधर्मी मात्र के लिए कहा गया है कि,ऐसे व्यक्तियों को राजा दंडित करें। जानबूझकर आधा अधूरा उद्धरण देकर आंखों में धूल झोंक रहे हैं और हमें बोल रहे हो कि कुरान का पूरा प्रकरण पढ़ो, जिससे जवाब मिल जाए। लेकिन खुद पूरा भाष्य नहीं पढ़ोगे और आधा अधूरा उठाकर हिंदुओं को भगवा आतंकवादी प्रमाणित कर देंगे।
जबकि मजहब के नाम पर आतंकवाद मुसलमानी फैलाते हैं यह तो इतिहास गवाह है। भारत में मुसलमानों ने कुरान की शिक्षाओं के अनुसार ही तलवार के बल पर हिंदुओं को मारा काटा और उन्हें गुलाम बनाया।यही काम आईएसआईएस भी कर रही है उनके अत्याचारों के वीडियो में बैकग्राउंड में कुरान की आयतें ही प्ले होते रहते हैं स्पष्ट है कि वह कुरान के अनुसार पाप कर रहे हैं मगर ऐसा कहीं देखने में नहीं आया कि वेद या मनुस्मृति पढ़कर किसी आर्य राजा ने गैर हिंदुओं पर ऐसे अत्याचार किया।


यहां साफ है कि अधर्मियों को राजा दंड देगा। पूरा सूक्त पं क्षेमकरणजी का भाष्य और भावार्थ सब पढो।
साफ लिखा है कि राजा अधर्मियों को दंड दे।ये नहीं कहा कि जो आदमी वैदिक ईश्वर पर ईमान न लाये या मूर्तिपूजा करे,उसको मौत के घाट उतारो।


मगर कुरान में काफिर वो है जो अल्लाह,रसूल,आखिरत किताबों को न माने वो काफिर। जो ईसा को ईश्वरपुत्र माने,वो काफिर है। काफिरों को जहां पाओ कत्ल करो। तब तक जिहाद करो जबतक अल्लाह का दीन न स्थापित हो।


यही अंतर है वेदनिंदक में और काफिर में। वेदनिंदक आपका पिता भी हो,तो अधर्मी होने से दंडनीय है।
पर कोई कितना धर्मात्मा हो, एकेश्वरवादी हो, पर वो रसूल पर ईमान न लाये तो सदा के लिये नरक में सडेंगा।
ये है कुरान!


अब हम कुरान की केवल एक आयत पर तफसीर यानी उसके प्रमाणिक भाष्य सहित इस्लाम में जिहाद की स्थिति बताते हैं-


काफिरोँ से तब तक लडते रहो जबदीन पूरे का पूरा अल्लाह के लिए न हो जाए।(कुरान-8-39)


इस विषय पर तफसीर इब्ने कसीर में व्याख्या की गई है-


http://www.qtafsir.com/index.php…


(And fight them until there is no more Fitnah...) "So that there is no more Shirk.'' Similar was said by Abu Al-`Aliyah, Mujahid, Al-Hasan, Qatadah, Ar-Rabi` bin Anas, As-Suddi, Muqatil bin Hayyan and Zayd bin Aslam. Muhammad bin Ishaq said that he was informed from Az-Zuhri, from `Urwah bin Az-Zubayr and other scholars that


" जबतक फितना,यानी शिर्क न रहे,यानी अल्लाह के सिवा किसी देवी देवता को मानने वाली विचारधारा न रहे।"


(and the religion (worship) will all be for Allah alone.) "So that Tawhid is practiced in sincerity with Allah.''


" जबतक अल्लाह के प्रति समर्पित होकर ऐकेश्वरवाद(तौहीद) न मानें "


(and the religion will all be for Allah alone) "So that La ilaha illa-llah is proclaimed.'' Muhammad bin Ishaq also commented on this Ayah, "So that Tawhid is practiced in sincerity towards Allah, without Shirk, all the while shunning all rivals who (are being worshipped) besides Him.''


" जबतक कि लोग 'ला इलाहा इल्लल्लाह' न कहने लगें - यानी कलमा पढ़ें।"


(I was commanded to fight against the people until they proclaim, `There is no deity worthy of worship except Allah.' If and when they say it, they will preserve their blood and wealth from me, except for its right (Islamic penal code), and their reckoning is with Allah, the Exalted and Most Honored.)


यहां सही हदीस का प्रमाण देकर कहते हैं कि-


" रसूल का कथन है-मुझे तब तक लोगों के विरुद्ध लड़ने का आदेश दिया गया है,जब तक वे ये न कहें कि-"नहीं है कोई देवता अल्लाह के सिवा"। जब वो लोग यह कहेंगे,तब ही उनकी जान और धन-संपत्ति की रक्षा मुझसे हो सकती है।"


( पाठकों! ये नहीं लगता कि ये वचन किसी गैंगस्टर आका ने कहे हों,कि तुम लोगों की जान और धन-संपत्ति तब तक सुरक्षित रहेंगी जब तक मेरी गैंगकी बात न मानो,वरना मरने के लिये तैयार हो जाओ?)


Also, in the Two Sahihs, it is recorded that Abu Musa Al-Ash`ari said, "The Messenger of Allah was asked about a man who fights because he is courageous, in prejudice with his people, or to show off. Which of these is for the cause of Allah He said,


(Whoever fights so that Allah's Word is the supreme, is in the cause of Allah, the Exalted and Most Honored.)''


" दो सही हदीसों में अबू मूसा बिन अशरी का कथन है कि-' रसूलुल्लाह को पूछा गया कि एक व्यक्ति इसलिये लड़ता है ताकि वो उत्साही है, और अपने लोगों का पक्ष लेने वाला है या केवल दिखावे को लिये। इन दोनों में से कौन सा मार्ग अल्लाह (के रास्ते में लड़ने) का है?
रसूल ने कहा-'(वह मार्ग अल्लाह का है)जिस मार्ग में अल्लाह के शब्द सर्वोपरि हैं,यानी जो कोई भी लड़ता है अल्लाह के मार्ग में(यही मार्ग अल्लाह का कहा गया है),जोकि सबसे श्रेष्ठ और महान् है।"


सही मुस्लिम हदीस का एक अंतिम प्रमाण दर्ज करते हैं-


Sahih Muslim
Chapter 9: COMMAND FOR FIGHTING AGAINST THE PEOPLE SO LONG AS THEY DO NOT PROFESS THAT THERE IS NO GOD BUT ALLAH AND MUHAMMAD IS HIS MESSENGER[1]
It is narrated on the authority of Abu Huraira that when the Messenger of Allah (may peace be upon him) breathed his last and Abu Bakr was appointed as his successor (Caliph), those amongst the Arabs who wanted to become apostates became apostates. 'Umar b. Khattab said to Abu Bakr: Why would you fight against the people, when the Messenger of Allah declared: I have been directed to fight against people so long as they do not say: There is no god but Allah, and he who professed it was granted full protection of his property and life on my behalf except for a right? ....


( सही मुस्लिम हदीस किताब १ हदीस ३९, अंग्रेजी संस्करण के अनुसार)


हदीस के बाब यानी अध्याय का विषय है- "लोगों से तब तक लड़ने का आदोश,जब तक जब तक वे यह न स्वीकार करलें कि अल्लाह ही एक ईश्वर है मोहम्मद उसका रसूल है।"


यहां उमर बिन खत्ताब कहता है कि रसूल घोषित किया है कि-'मुझे तब तक लड़ने का आदेश हुआ है,जब तक लोग ये न स्वीकार कर लें कि-'नहीं है कोई ईश्वर अल्लाह के सिवा,और जो यह मानेगा,केवल उसी की जान और धन-संपत्ति का संरक्षण हमारी ओर से किया जायेगा।'


( मतलब कि जो अनेक देवी-देवताओं को मानता हो,उसकी जान लेने का हक मुसलमानों को है? उनकी धन-संपत्ति मुसलमानों की बपौती बन जाती है?)


अतः पाठकों! इस तरह वेद को अच्छे से पढें और धूर्तों के भुलावे में न आयें। साथ ही, कुरान की खूनी आयतें व उन पर हदीस व तफसीर भी देखें- तब आपको पता चलेगा कि इस्लाम में जो अल्लाह, रसूल, किताबों ,फरिश्तों आदि यानी कुल मिलाकर इस्लाम को ना माने ,उसको मारने ,पीटने, लूटने की आज्ञायें भरी हुई पहले इन मानवता विरोधी आयतों पर कार्यवाही करें फिर वैदिक धर्म को कुछ बोलें।


- कार्तिक अय्यर


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