वसिष्ठस्मृति में कहा है
वसिष्ठस्मृति में कहा है
कर्तव्यमाचरन् कार्यम्,अकर्तव्यमनाचरन्
तिष्ठति प्रकृताचारे, स तु आर्य इति स्मृतः॥
अर्थात् आर्य वह कहलाता है जो कर्तव्य कर्म का सदा आचरण करता और अकर्तव्य कर्म अर्थात् पापादि से दूर रहता हो और जो पूर्ण सदाचारी हो।