वैदिक स्वर्ग ( गीत )
वैदिक स्वर्ग ( गीत )
मेल के हैं ये खेल तमाम।।
पति-पत्नी भगिनी प्रिय भ्राता, सास-वधू सुत-पितु और माता,
रखते जहाँ मेल का नाता, वहाँ सदा अनुकूल विधाता,
कहलाता है वही जगत् में, सदन स्वर्ग सुख धाम,
मेल के है ये खेल तमाम।।
मेल से ही फूली फुलवारी, मेल से ही हैं महल अटारी,
रखतीं मेल इन्द्रियाँ सारी, लगती देह स्वस्थ अति प्यारी,
मेल से ही चलती है लारी, मोटर-रेल और ट्राम,
मेल के हैं ये खेल तमाम।।
बिखरे तिनके मिल जाते हैं, हाथी मस्त बाँध पाते हैं,
घन-कण मिल जल बरसाते हैं, सूखी खेती लहराये हैं,
मेल बिना न 'प्रकाश सिद्ध हों कोई जग में काम,
मेल के हैं ये खेल तमाम।।