वैदिक स्वर्ग


वैदिक स्वर्ग


 


यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी।


विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैव हि॥


(चा. नीति २।३)


      जिसका पुत्र पितृ-भक्त है, जिसकी स्त्री आज्ञाकारिणी है, धन-धान्य से जो सन्तुष्ट है उसे तो यहीं (गृहाश्रम में) स्वर्ग है।


धन से हो सन्तुष्ट जो, पुत्र रहें अनुकूल।


पत्नी का व्यवहार भी, हो बरसाता फूल।


हो बरसाता फूल, सदा मधुवाणी बोले


पति को माने देव, भेद अन्तर के खोले


हो स्वदेश हित बात, स्वर्गमय मानो जीवन।


सत नारी अनुकूल, मूल है धन का साधन।


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