वैदिक ईश्वर भक्ति
वैदिक ईश्वर भक्ति
इस वर्णाश्रम धर्म के पालन में मनुष्य को अविचल और समर्थ बनाने के लिये है। कर्त्तव्य-पालन की शक्ति प्राप्ति के लिये हम शक्ति-भण्डार प्रभु के चरणों में बैठते हैं। ईश्वर शक्ति का अर्थ ईश्वर को रिश्वत देना खुशामद करना या गा, रिझाकर पापों के फल से छुट्टी पा लेना नहीं है, किन्तु ऐसी शक्ति और स्वभाव प्राप्त करना है। जिससे पाप और अपराध होवें ही नहीं। वेद की ईश्वर भक्ति अत्यन्त सरल हैईश्वर एक है- दो चार या दस बीस नहीं। यों उस एक ही ईश्वर के गुण कर्म और स्वभाव परक असंख्य नाम हैं पर उसका मुख्य और निज नाम 'ओ३म्' है। सारे संसार के मनुष्य उस एक ओ३म् प्रभु के पुत्र होने से सभी आपस में भाई-भाई हैं। पिता को प्रसन्नता इसी में है कि सभी भाई परस्पर मिलकर प्रेम पूर्वक रहें और एक दूसरे को सूखी बनाने के विचार से कार्य करें। परम पिता परमात्मा की सच्ची पूजा भी प्रभु की प्रजा की निष्काम सेवा-साधना ही है. 'पञ्च महायज्ञों' का विधान इसी दृष्टि से है। सब सबके सुख के लिए सोचें, सब सबके सुख के लिए कार्य करें। सब सबके सुख के लिए जियें यही वैदिक ईश्वर भक्ति का व्यावहारिक रूप है।