वह सबका, सब उसके


वह सबका, सब उसके


             कुरान शरीफ भक्तिरस का एक अनुपम ग्रन्थ है। उसमें परमेश्वर के एक से एक बढ़ कर गुणों का परिगणन किया गया है । यदि उन गुणों को संकलित करके प्रस्तुत किया जाय तो 'विष्णुसहस्रनाम' जैसे ग्रन्थ की रचना हो सकती है। 'अलहज्ज' सूरा में ग्रन्थकार ने कहा है-


            'अल्लाह रात को दिन में पिरोता हा चलता है और दिन को रात में पिरोता हुआ चलता है और यह कि अल्लाह सुनने वाला और देखने वाला है।


            क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह अाकाश से पानी बरसाता है और धरती हरी-भरी हो जाती है। निस्सन्देह, अल्लाह सूक्ष्मदर्शी और ख़बर रखने वाला है।'


           इन कतिपय प्रायतों से देखा जा सकता है कि पौराणिक स्तोत्रों की तरह कुरान में भावमुग्धता के क्षणों में परमेश्वर की महिमा का बखान किया गया हैइन तीन अायतों में परमेश्वर को सुनने वाला, देखने वाला. उच्च, महान, सूक्ष्मदर्शी और सबकी ख़बर रखने वाला कहा गया है। ये ऐसे गुण हैं कि संसार का कोई भी ईश्वर-विश्वासी इनके बिना अपने इष्ट देव की कल्पना भी नहीं कर सकता। उसके इन गुणों की प्रतीति इस संसार में प्रवर्तित, नियमित व्यवस्था से होती है। दिन के बाद रात और रात के बाद दिन ऐसे आते हैं जैसे एक दूसरे में पिरो दिये गये हैं। उसकी यह व्यवस्था उसकी महिमा का परिचय देती हैवह इस व्यवस्था का नियन्ता है। इसलिए उसे द्रष्टा कहा गया है। भक्त का भावुक मन उसकी इस महिमा का ही बखान नहीं करता, वह यह भी सोचता है कि यह सारी व्यवस्था उसके अपने लिए है । वह परमेश्वर के अनुग्रह को स्वीकारता है और मानता है कि वह परमदयालु है। जो वह कहेगा, ईश्वर उसे अवश्य सुनेगा। जो वह करेगा, ईश्वर उसे देखेगा । भक्त को विश्वास हो जाय कि ईश्वर उसकी बात सुनेगा तो उसके सामने आने वाली बड़ी से बड़ी कठिनाइयां दूर हो जाती हैं। इसी तरह उसे विश्वास हो जाय कि उसके सब काम परमेश्वर देख रहा है तो वह न तो अकर्मण्य होगा और न दुष्कर्म करेगा।


          यह विश्वास ही इस्लाम में 'ईमान' के रूप में जाना जाता है। इस विश्वास का सहज परिणाम यह होता है कि वह ब्रह्म या ईश्वर की सत्यता और सत्ता पर प्रास्था धारण करता है। उसके अतिरिक्त उसे सब कुछ असत्य या मिथ्या लगने लगता है। ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या सूत्र का भाव ही यहां प्रकट किया गया है । ब्रह्म या परमेश्वर ही एकमात्र सत्य है-इसलिए वह उच्च है, महान् है; उच्चतम है, महत्तम है।


         वह उच्च है फिर भी हमारी आवश्यकतानों को समझता है। गरमी से तपती हुई धरती की दशा को देखकर वह दया हो जाता हैपानी बरसाता है। ईश्वर की नियामत पानी के रूप में पाकर धरती हरी-भरी हो जाती है। वह सूक्ष्मदर्शी है क्यों कि वह सबकी सम्मिलित और व्यक्तिगत आवश्यकताओं को समझ जाता है और उनकी पूर्ति करने के लिए जूट जाता हैवह सबकी ख़बर रखता है।


          ऐसे दयालु और भक्तवत्सल के प्रति कौन नमन नहीं करेगा ? कौन उसके वरदान पाने को आतुर नहीं होगा ? कौन उसकी महिमा का गुणगान करने को तैयार नहीं हो जायगा ? वह सबका है, सब उसके हैं। 


 


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