वास्तविक व्यक्ति बनें, दूसरों के जीवन में आनंद की लहरें उत्पन्न करें ।

 



 



वैसे तो आजकल लोग एक दूसरे के घर पर कम ही जाते हैं, क्योंकि कंप्यूटर मोबाइल फोन व्हाट्सएप फेसबुक आदि से ही अपना काम चला लेते हैं। 
बहुत कम अवसर ऐसे होते हैं जब वे साक्षात् मिलने के लिए दूसरों के घर जाते हैं। और ऐसे अवसरों पर भी औपचारिकताएं बहुत होती हैं। कितने ही लोग तो सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए ही दूसरों के घर जाते हैं, कोई त्यौहार पर्व इत्यादि के अवसर पर।
 *फिर भी जो लोग भी जाते हैं, जितनी मात्रा में भी जाते हैं, वहां जाकर जब उन मित्रों संबंधियों से मिलते हैं, तो उनमें से कई मित्र संबंधी ऐसा अनुभव करते हैं, कि यह व्यक्ति सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए आया है। तो उस यजमान मित्र को भी कोई विशेष सुख उस आने वाले अतिथि से नहीं मिलता, कोई विशेष सहयोग नहीं मिलता। वह यजमान मित्र भी उसी प्रकार से औपचारिकता निभा देता है, और बात आई गई हो जाती है।*
परंतु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, *जो दिखावे के लिए नहीं जाते, वास्तव में दूसरों से प्रेम भाव रखते हैं, और उनकी परिस्थिति को समझने का प्रयास करते हैं। आवश्यकता पड़ने पर उनके दुखों को दूर भी करते हैं।* ऐसी भावना वाले लोग जब घर पर आते हैं, तो यजमान मित्र भी अच्छी प्रकार से उनको पहचानते हैं। उनके आने से यजमान के बहुत से दुख दूर हो जाते हैं, उन्हें  वास्तविक आनंद होता है। बस ऐसे ही लोग अपना जीवन सार्थक कर रहे हैं, जो वास्तव में दूसरों की सहायता करते हैं। उनके जीवन में आनंद की लहरें उत्पन्न करते हैं। ऐसे ही लोग वास्तविक जीवन जी रहे हैं। इनको*वास्तविक व्यक्ति* नाम देना चाहिए।
 बाकी तो संसार औपचारिकताओं में चलता ही रहता है, और आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा। 
आप भी *वास्तविक व्यक्ति बनें, दूसरों के जीवन में आनंद की लहरें उत्पन्न करें, तो आपका जीवन भी सार्थक एवं सफल होगा* -


*स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*


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