उर्मिला राजपूत

             अजमेर नरेश धर्मगज देव की परम सुन्दर, शीलवती. पतिपरायण तथा राजनीति में निपुण वीर रानी थी। ग्यारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में महमद गजनवी के लगातार आक्रमण हो रहे थे। देव मन्दिर तोड़े जा रहे थे। सोमनाथ का मन्दिर गजनवी की अपकीर्ति का स्मारक बन चुका था। महमूद गजनवी ने अचानक अजमेर पर आक्रमण कर दिया। अजमेर नरेश का इतना ही अपराध था कि सोमनाथ के विध्वंश के समय उन्होंने गजनवी का डटकर विरोध किया था। गजनवी की विशाल सेना के सामने विजय की सम्भावना न के बराबर थी। ऐसी दशा में भारतीय महिलाएं अपना कर्तव्य पालन करना भली-भांति जानती थींजिस समय अजमेर नरेश धर्मगजदेव युद्ध के लिए प्रस्थान करने लगे, रानी उर्मिला ने महाराज के साथ युद्ध क्षेत्र में चलने का अनुरोध किया। उसने कहा "स्वामी मेरा स्थान सदैव आपकी बायीं ओर है।" रानी के भावों की सराहना करते हुए, समय और परिस्थिति के अनुसार महाराज ने रानी को समझाया-"प्रिये! तुम्हें युद्ध में साथ ले चलने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, किन्तु मेरी अनुपस्थिति में राज्य-प्रबन्ध की व्यवस्था कौन करेगा? समय और परिस्थिति की मांग है कि इस प्रबन्ध और देखभाल के लिए, मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊँ।" अपने स्वामी के मन्तव्य को समझ कर और अपने कर्तव्य का पालन करते हुए उर्मिला ने अपने स्वामी को सहर्ष विदा किया।


             महाराजा ने प्रारम्भ में अपने युद्ध कौशल से शत्रु के छक्के छुड़ा दिये, किन्तु गजनवी की विशाल सेना और धर्मान्धता तथा उन्माद के सामने सन्ध्या होते-होते महाराजा शत्रु के तीर का शिकार हो गये। महाराज के मरते ही राजपूत सेना के पैर उखड़ गये। सायंकाल जब महाराज का शव किले में लाया गया तो रानी उर्मिला ने पति के शव को अपनी गोद में रखकर अग्नि स्नान करते हुए, सती परम्परा की ज्योति को गति दी ।


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।