तीसरी कल्पना


             तीसरी कल्पना तीसरा विचार यह है कि बिना किसी पुस्तक के माध्यम के समय-समय पर विशेष पुरुषों को ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त होता है। ब्रह्मसमाज और उनके अनुयायी तथा अन्य कुछेक पुरुष, इस कल्पना को ठीक मानते हैं। जब जगत् के प्रारम्भ में मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो चुका तब उसके बाद भी ऐसी ज्ञानप्राप्ति की कल्पना से ईश्वर की सर्वज्ञता में धब्बा आता है। इलहाम होकर फिर उसका रद्द करना, अथवा उसमें संशोधन करना, अथवा उसके स्थान पर नया ज्ञान देने से ईश्वर के ईश्वरत्व में बाधा पहुँचती है। इसलिए दूसरी और तीसरी कल्पनाएँ अप्रतिष्ठित हैं। अस्तु अब हम पहली कल्पना के सम्बन्ध में कुछेक आवश्यक बातों का उल्लेख करते हैं।


 


-महात्मा नारायण स्वामी



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