तीसरा आक्षेप


             योनि-परिवर्तनवाद की पुष्टि में एक युक्ति यह भी दी जाती है कि मनुष्य के गर्भ की अवस्था भी इस वाद की पुष्टि करती है।


             (१) इस युक्ति का तात्पर्य यह है कि गर्भ के प्रारम्भिक मासों में उस (गर्भ) का चित्र उन्हीं जन्तुओं से मिलता-जुलता होता है, जिनसे उन्नत होकर योनि-विकास द्वारा मनुष्य बना हुआ, कहा जाता है। अन्त के मासों में उस से मनुष्यत्व के चिह्न प्रकट हुआ करते हैं। परन्तु यह कथन अब हाल की खोजों से ठीक सिद्ध नहीं होता'थियोसोफिकल पाथ' में डॉक्टर बूड जोन्स के कथन का हवाला देते हुए, सी०जे०रियान ने लिखा है-'हैकल का यह वाद, कि मनुष्य का गर्भ बन्दरों के गर्भ से लगभग अन्त के मासों तक पहचाना नहीं जा सकता, अशुद्ध और त्याज्य है। कुछेक आवश्यक अंग जैसे कि मनुष्य के पाँव एक माँसपेशी के साथ जो मनुष्य के नीचे के जन्तुओं में नहीं पाये जाते, मनुष्य के गर्भ में यथासम्भव प्रारम्भ ही में प्रकट हो जाते हैं। यदि मनुष्य चार पाँव वाले जन्तुओं आदि की योनियों से गुजर कर बना होता तो वे अवयव अवश्य गर्भ के अन्त में प्रकट होते।' डॉक्टर वूल जोन्स और रियान का भाव उनके ही शब्दों में समझा जा सके, इसलिए इन दोनों सज्जनों के लेखों के उद्धरण फुटनोट में दिये गये हैं। वूल जोन्स ने अपने लेख में, जैसा कि उनके उद्धरण से मालूम होगा, इस बात का स्पष्ट रीति से वर्णन कर दिया है कि मनुष्य-योनि विकास द्वारा नहीं बनी है। किन्तु उसकी योनि इन सब से भिन्न और स्वतन्त्र है। जब दस मास में रज और वीर्य के मेल से मनुष्य बन जाता है तब उसे लाखों वर्षों में बना हुआ बताना, ईश्वरीय शक्ति का अपमान करना है। कुछ और भी प्रमाण दिये जाते हैं।


            (२) ब्रिटिश अद्भुतालय लन्दन के इञ्चार्ज डॉक्टर इथिरज ने अपने अनुभव के आधार से लिखा है कि इस महान् अद्भुतालय में किञ्चिन्मात्र योनि परिवर्तन की पुष्टि का कोई साधन नहीं है। विकासवाद की स्थापना के लिए जो कुछ कहा जाता है उसका ९/१० भाग बकवास मात्र है। वह न तो जाँच पड़ताल से ठीक प्रतीत होता है और न घटनाओं से उसकी पुष्टि होती है।


            (३) प्रोफेसर ओविन ने लिखा है कि योनि-परिवर्तन का उदाहरण कभी किसी व्यक्ति के देखने में नहीं आया।


           (४) प्रोफेसर थामसन ने लिखा है कि हम नहीं जानते कि । मनुष्य कहाँ से निकल आया था कैसे उत्पन्न हो गया। यह बात खुले तौर से स्वीकार की जाती है कि मनुष्य की उत्पत्ति जिस प्रकारलगभग


          ancestors must be pushed a very long way back X X X It becomes impossible to picture man, as being descended from any form at all like the reacent monkeys X X X or from their fossil representatives X X X He must have started an independent line of his own long before the anthropoid apesand the monkeys developed those specializations which shapped thair definite evolutionary destinies."


         Refering to Wool Jones' above view Mr.C.J.Ryan writes in the "Theosophical Path" "He proves that Haeckal's teaching that a human embryos cannot be distinguished from that of monkeys until very late developments is wrong and must be abandoned, by showing that certain essentially human characters such as the human walking foot with a leg-muscle found is none of the lower animals, are visible in the human embryo at the earliest possible time and not late in the formation as they would be in man had passed these anthropoidal and quadrupadal stages. (Vedic Magazine May 1926 P.143).


2.      In all this Great Museum there is not a particle of evidence of transmutation of species. Nine tenth of the talk of evolution is sheer nonsense, not founded on observation and wholly unsupported by facts.
                                                             (Dr. Ethridge of the British Museum, London.)


3.      No instance of the change of species into another has ever been recorded by man.                                                                                                          Prof. Ovin


विकासवाद में बतलाई जाती है, वह प्रकार सम्भावना की सीमा से सीमित है, परंतु उसका कोई स्थिर स्थान विज्ञान की सीमा में नहीं हैं l 


(५) प्रो. डौसन ने लिखा है कि मनुष्य बनाने वाली कथित बीच की योनियाँ वैज्ञानिक जगत में अज्ञात हैं प्राचीनतम अवशिष्ट चिह्न जो मनुष्यों के पाये जाते हैं उनसे स्पष्ट है कि मनुष्य प्रारंभ से इसी रूप में है। उनसे योनि विकास की पुष्टि नहीं होती है।


 


 



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