स्वर्ग नरक आदि


स्वर्ग नरक आदि


       स्वर्ग, नरक-स्वर्ग या नरक नाम के कोई विशेष स्थान नहीं हैं। अपितु सुख का नाम स्वर्ग और दु:ख का नाम नरक है। ..


       पुण्य, पाप-पुण्य का अर्थ है परोपकार आदि अच्छा काम। पाप का अर्थ है अन्याय आदि गलत काम।


       जाति-मनुष्य, गाय, घोड़ा, कुत्ता, सांप, चिड़िया आदि अलग-अलग जातियां हैं। सभा मनुष्या का एक हा जाति है | 


       पुजा-ज्ञान आदि गुण वाला का यथायोग्य सत्कार करना।


       जड़--जो वस्तु ज्ञान आदि गुणों से रहित है।


      चेतन-जो पदार्थ ज्ञान आदि गुणों से युक्त है।


      देव, देवी, देवता-विद्वान् और परोपकारी मनुष्या मा जन्म-शरीर और आत्मा का संयोगा !


      मरण-शरीर और आत्मा का वियोग विश्वास-सच्चाई को मानना, झूठ को न मानना।


      जान और कर्म-बिना कर्म ज्ञान व्यर्थ है, बिना ज्ञान कर्म अंधेरे में भटकने के समान है।


      आचरण-विद्या प्राप्त कर उस पर आचरण न करने वाला मनुष्य ऐसे है कि जैसे गधे की पीठ पर धान लदा हो जिसका बोझ तो उठा रहा है पर खा नहीं सकता


      परोपकार-अपने सब सामर्थ्य से दूसरे प्राणियों के सुख के लिए तन, मन, धन, से प्रयत्न करना।          सदाचार-सत्य का आचरण तथा असत्य का त्याग।


      अतिथि-जिसकी आने और जाने की कोई निश्चित तिथि न हो तथा जो विद्वान् होकर सब जगहों पर घूम कर सत्योपदेश से सब जीवों का उपकार करता है।


       भावना-जो वस्तु जैसी है उसको वैसा ही समझ लेना।


       पण्डित-सच और झूठ को विवेक से जानने वाला, धर्मात्मा, सत्यप्रिय, विद्वान् और सब का हितकारी मनुष्य।


       मुर्ख -जो अज्ञान. हठ आदि दोष महित है।


       शास्त्र-जो सत्य विद्याओं के प्रतिपादन से युक्त है और जिससे मनुष्य को सत्य शिक्षा मिले।


       विज्ञान-तिनके से लेकर ईश्वर पर्यन्त सभी पदार्थों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर उनसे उपकार लेना ही विज्ञान कहलाता है।


       वैराग्य-सब बुरे कामों और दोषों से अलग रहना।


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।