स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्वामी दयानन्द सरस्वती


• स्वामी दयानन्द सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक दलितोद्धारक, वेदोद्धारक, समाज-सुधारक, युग-प्रर्वतक और एक महान योगी थे।


• उन का जन्म सन् 1824 ई. को टंकारा गांव (गुजरात) में हुआ


• उन का बचपन का नाम मूल शंकर था


• स्वामी दयानन्द सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक दलितोद्धारक, वेदोद्धारक, समाज-सुधारक, युग-प्रर्वतक और एक महान योगी थे।


• उन का जन्म सन् 1824 ई. को टंकारा गांव (गुजरात) में हुआ


• उन का बचपन का नाम मूल शंकर था


• एक दिन उन्होनें मंदिर में देखा कि कुछ चूहे शिव मूर्ति पर चढ़े प्रसाद को खा रहें है। तब उन के मन में आया कि मूर्ति सच्चा शिव नहीं। मुझे सच्चे शिव की तलाश करनी है। जिस से उन में वैराग्य की भावना उत्पन्न हुई।


• उनकी बहन और चाचा की मृत्यु से उन में वैराग्य की भावना और भी बढ़ी।


• मूलशंकर घर को छोड़ सन्यासी बन गये तथा स्वामी पूर्णानन्द से सन्यास की दीक्षा ली तथा नाम रखा दयानन्द सरस्वती


• वेद ज्ञान तथा योग शिक्षा के लिए वह जंगलों, पहाडो, में घूमते हुए, मथुरा में स्वामी विरजानन्द की कुटियां में पहुंचे।


• वहाँ से शिक्षा प्राप्ति के बाद उन्होनें गुरू विरजानन्द को वचन दिया कि वह सारा जीवन वेद प्रचार तथा समाज सुधार के लिए समर्पित करेंगे। उन्होनें इस वचन को पूरा निभाया।


• स्थान स्थान पर प्रचार करते हुये 1875 में उन्हो ने आर्य समाज की बम्बई में स्थापना की तथा उदेश्य रखा "संसार का उपकार करना" अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति" बिना किसी देश, जाति के भेद के।


• इसी प्रकार प्रचार करते करते वह महाराजा जोधपुर के निमन्त्रण पर वहां पहुचे।


• जोधपुर में राज दरबार की एक नर्तिका ने स्वामी जी के रसोइए से मिलकर उनको जहर दे दिया यद्यपि पहले भी उनके खिलाफ कुछ लोगों ने उनको 17 बार जहर दिया था परन्तु स्वामी जी ने योग द्वारा उस जहर के प्रभाव को खत्म कर दिया था। परन्तु इस बार के प्रभाव से स्वामी जी बच न सके और वह इस संसार से विदा हो गये।


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