स्वाध्याय महत्व


 स्वाध्याय महत्व


      स्वाध्याय के भी दो अंग हैं। प्रथम है (स्व+अध्ययन) अर्थात् आत्म-निरीक्षण और द्वितीय है वेदादि सत्शास्त्र एवं आत्म-निर्माण की रुचि जगाने वाली उत्तम पुस्तकों का नियमित अध्ययन।


      स्वाध्याय की बड़ी भारी महिमा कही गई है। यहाँ तक कि 'स्वाध्याय योग मासीत् परमात्मा प्रकाशते' स्वाध्याय योग के द्वारा परमात्मा के दर्शन होते हैं। इसलिए प्रतिदिन नियम पूर्वक स्वाध्याय करना चाहिए। कुछ नहीं तो चाहे एक ऋचा एक यजुर्वाक्य, एक सामवचन एक गाथा या एक लोकोक्ति या किसी उत्तम ग्रन्थ के किसी एक अंश का ही पाठ या पारायण या उच्चारण कर लेवे, पर करे अवश्य जिससे कि स्वाध्याय का व्रत न टूटने पाये।इसलिए शास्त्र (तैत्तिरीय आर0 प्रपा० ७अनु०९,११। कं0 १-४) आदेश देते हैं -


स्वाध्यायान्मा प्रमदः।


स्वाध्यायप्रवचनाभ्याँ न प्रमदितव्यम्॥


       हे मनुष्य ! प्रमाद रहित होकर पढ़-पढ़ा। प्रमाद से पढ़ने और पढाने को कभी न छोड|


स्वाध्यायं सततं कुर्यान्न पचेदन्नमात्मनः॥


       गृहस्थ स्त्री-पुरुष को चाहिए कि स्वाध्याय में विघ्न डालने वाले सब विषयों को पूरी तरह से त्याग करे। मनु० ४।१७


स्वाध्यायं सततं कुर्यान्न पचेदन्नमात्मनः॥


       प्रतिदिन निरन्तर स्वाध्याय करता रहे। (इसके बिना अपने लिए अन्न भी न पकावे। अर्थात स्वाध्याय किए बिना भोजन नहीं करना चाहिए। याज्ञ0 स्मृ० आचाराध्याये १०४) 


      जो स्त्री पुरुष नियम में रहकर अर्थात् जितेन्द्रिय तथा पवित्र होकर एक वर्ष तक भी विधि पूर्वक स्वाध्याय-वेदाध्ययन करता है. उसके लिए यह स्वाध्याय नित्य दूध दही घी और मधु बरसाता हैअर्थात् उसको सात्विक अन्न की कमी कभी नहीं होती |


      (गृहस्थ) उत्तम सज्जन प ष सर्वकाल तपश्चर्या (परिश्रम) करता हुआ सदा वेद का ही अस करे। क्योंकि बुद्धिमान् (आप्त धार्मिक) जन का वेदाभ्यास (नित्य स्वाध्याय) करना ही इस संसार में परम तप कहा है।


      जो द्विज अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ( वर्णस्थ गृहस्थ स्त्री-पुरुष) वेद को न पढ़ के अन्यत्र अर्थात् अन्य शास्त्र पढ़ने (अथवा अन्य कार्यो) में श्रम करता है, वह जीवित ही अपने वंश अर्थात् पुत्र पौत्र के सहित शूद्र भाव को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है |


      हे स्त्री पुरुषो ! जो बुद्धि ( विचार शक्ति) धन (को धर्म पूर्वक कमाने की योग्यता) और हित ( गृहस्थ व्यवहार की उन्नति के साधक विषय) की अत्यन्त शीघ्र वृद्धि करने हारे शास्त्र हैं उनको और वेद के भागों को विद्याओं को आप नित्य देखा करोअर्थात् सुनें सुनावें। ब्रह्मचर्याश्रम में जो पढ़े हों, उनको स्त्री-पुरुष नित्य विचारा और पढ़ा करें।'


      पारिवारिक पुस्तकालय- आदर्श गृहस्थ (स्वर्ग) में उत्तमोत्तम पुस्तकों से युक्त एक पारिवारिक पुस्तकालय होना चाहिए। स्वाध्याय योग्य उत्तम पत्र-पत्रिकायें भी एक आदर्श गृहस्थ में अवश्य आनी चाहिए।


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