स्व +अभिमान =अभिमान

स्व +अभिमान =अभिमान


         दो शब्द है, एक है अभिमान तथा दूसरा है स्वाभिमान। दोनों का स्वरूप लगभग एक सा हैअभिमान में 'स्व' प्रत्यय जोड देने से स्वाभिमान बन जाता है परन्तु अर्थो में भिन्नता है। यदि सही अर्थो में कहा जाये तो भिन्नता ही नहीं बल्कि विरोध भी हैअभिमान में अपने को दूसरे से श्रेष्ठ समझने का भाव बोध होता है जबकि स्वाभिमान में अपने पर गर्व करने का भाव बोध होता है। अभिमानमें एक प्रकार की अकड़ होती है जबकि स्वाभिमान में सौम्यता होती है, विनम्रता होती है।


         चरक संहिता के अनुसार अभिमान की एक मानसिक रोग की श्रेणी में गणना की गयी है तथा स्वाभिमान को एक स्वस्थ मस्तिष्क का परिचायक माना गया है। विचारणीय है कि इस संसार में एक से एक श्रेष्ठ, सुन्दर, धनवान, योग्य, प्रतिभाशाली, स्वस्थ तथा मेधावी । फिर हर किसी का एक क्षेत्र होता है। हर कोई अपने क्षेत्र में सुन्दरधनवान, योग्य, प्रवीण, प्रतिभाशाली, मेधावी है। हम समाज में किस-किस से तुलना करेंगे? अभिमानी व्यक्ति आजीवन दुखी ही रहता है और दुःख ही भोगता रहता है। इसलिए कभी भी दूसरे से अपने को श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए। हां, अपने को इतना योग्य बनाओ कि समाज को तुम्हारे ऊपर गर्व हो। इसलिए अभिमानी न बन कर स्वाभिमानी बनो। विश्वविजेता सिकन्दर महान एक अभिमानी राजा होने के कारण आज भी तिरस्कृत है।


         अभिमान एक ऐसा शब्द है जिसको समाज गलत मानता है और उसे यह शब्द स्वीकार्य नहीं है। इसी कारण अभिमान शब्द में 'स्व' जोड़ा गया है। अभिमान का अर्थ होता है 'अहंकारी' अर्थात् जिसको अपने ऊपर गर्व नहीं, अहंकार है। स्वाभिमानी व्यक्ति वही होता है जो स्वयं को भली भांति पहचानता हो। स्वाभिमानी व्यकित में न तो स्व की भावना होती है और न ही अभिमान की। ऐसे व्यक्ति से समाज का प्रत्येक व्यक्ति जुड़ना चाहता है। जबकि अभिमानी व्यक्ति से समाज घृणा करता है और दूर ही रहना चाहता है। क्योंकि वह अहंकार से युक्त होता है और समाज में ऐसे व्यक्ति को सदैव हीन भावना से देखा जाता है। समाज में उसके प्रति न तो किसी प्रकार का आदर होता और न ही सम्मान होता है।


         स्वाभिमानी व्यक्ति की तो बात ही कुछ और होती है। वह प्रतयेक पग पर विनम्र होता है। स्वाभिमानी हमेशा 'सर्वजन सुखायसर्वजन हिताय' को ही चरितार्थ करता है और 'योगक्षेम' का अनुपालन करने के लिए सदैव तत्पर रहता हैजबकि अभिमान व्यति सदैव अहंकार, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध से ग्रसित रहता है। हमारा दूसरे से श्रेष्ठ होने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है। हर कोई अपने स्थान पर श्रेष्ठ होता है, अनूदित होता है। इस संसार में कोह किसी से ऊपर नहीं है और न कोर्दा किसी से नीचे हैएक छोटी सी घास में उगा हुआ फूल भी अपना उतना ही महत्व रखता है जितना कि आकाश में स्थित बड़े से बडा तारा अपना महत्व रखता हैदोनों का अपने-अपने स्थान पर समान ही मूल्य है। रहीम कवि ने कहा भी है-


रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिए डार।


जहां काम आवे सुई कहा करे तलवार॥


         अर्थात् जो कार्य एक छोटी सी सुई कर सकती है वह कार्य तलवार द्वारा नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार जो कार्य तलवार द्वारा किया जा सकता है। उस कार्य को सुई द्वारा नहीं किया जा सकता हैसबका अपना-अपना स्थान है, अपना-अपना महत्व है।


          कबीर, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, रसखान, मुंशी, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, पं. रामचन्द्र शुक्ल, रामधारी सिंह, 'दिनकर', हजारी प्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा जैसे लेखकों, महात्मा गौतम बुद्ध, महर्षि स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज जेसे सन्तों और महापुरुषों, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविन्द सिंह जैसे शौर्यवान पुरुषों, महात्मा गांधी, सुभाषचन्द बोस, स्टालिन, मुसोलिनी, चर्चिल जैसे महानुभावों को स्वाभिमानी व्यक्तियों की श्रेणी में गिना जाता है और समाज उनको आज भी सम्मान और आदर की दृष्टि से देखता है जबकि रावण, दुर्योधन, हिटकर जैसे व्यक्तियों की गणना संसार में आज भी अभिमानी व्यक्तियों में की जाती है।


           क्या आपने कभी अपने विषय में भी परिकल्पना की है, मनन क्या है कि आप स्वयं किस श्रेणी में आते है।? यदि स्वाभिमानी हैं तो एक श्रेष्ठ व्यक्ति हैं और अभिमानी तो शीघ्र ही अपने में परिवर्तन लाईये और स्वाभिमानी बनिये। विश्व आपका सम्मान करेगा, स्वागत करेगा। 


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