सिख मत में आर्य शब्द

सिख मत में आर्य शब्द


(क)     जो तुम सिख हमारे आरज।


            देवो सीस धर्म के कारज ॥


                                                                     -पंथप्रकाश कृत ज्ञानी ज्ञानसिंह


(ख)     तृतीय जो नर नारी आरज।


            हो रहे निज धर्मो खारज॥


          पाप कुकर्मन में अति लागे।


         इस हेतु हो रहे अभागे॥


         ये शब्द दशम गुरुजी ने जब बड़ा यज्ञ किया था तब कहे थे।


                                                                                           -पंथप्रकाश


        अर्थ-जो स्त्री-पुरुष आर्य धर्म से अलग हो रहे हैं, अर्थात् पाप कर्म में लगे, अभागे बन रहे हैं, उनके सुधार के लिए मैं यह यज्ञ करना चाहता हूँ। 


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