श्रीयुत पं० माखनलाल जी चतुर्वेदी

श्रीयुत पं० माखनलाल जी चतुर्वेदी


      सी० पी० के होम मेम्बर से आज्ञा लेकर श्रीयुत काशीप्रसाद पांडे और साथ में श्रीयुत कुंजबिहारीलाल जी एम०एल०ए० २७ जुलाई को चतुर्वेदीजी से मिलने गये थे। श्रीयुत कुंजबिहारीलाल जी ने बिलासपुर से चतुर्वेदीजी सम्बन्धी कुछ बातें कर्मवीर' में भेजी थी, जो नीचे प्रकाशित की जाती हैं-


      "कोठरी के दरवाजे पर पहुंचते ही हमें सच्चे देशभक्त और दढ़ असहयोगी चतुर्वेदी जी कैदियों की पोशाक में खड़े-खड़े रस्सी भाजते दृष्टिगोचर हुए। इन्हें इस दशा में देख कर दुःख हुआ। शिष्टाचार के पश्चात् उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि आप ही के शुभागमन में आज दोपहर से सफाई की चहल पहल जारी थी, मुझे आश्चर्य था कि आज किसका आगमन हो रहा है कि जिसके लिए कर्मचारी सफाई करने की दौड़ धूप कर रहे थे। सुपरिण्टेण्डेण्ट की ओर देखने पर उन्होंने कहा कि आप लोगों के आने की सूचना जेलर को दे दी गई थी परन्तु कमरे आदि की लिपाई सप्ताह में एक बार होती है। चतुर्वेदी जी ने कहा कि यह कमरा दोपहर के बाद ही लीपा गया है। सुपरिण्टेण्डेण्ट जेल ने इस पर विश्वास नहीं किया। कहा कि यदि दोपहर को लीपा गया होता तो इतनी जल्दी सूखता? किन्तु हमें भी देखने से ऐसा ही मालूम हुआ कि दोपहर के बाद ही लीपा गया है। पांडे जी के पूछने पर उन्होंने कहा कि मुझे किसी प्रकार के कष्ट के लिए शिकायत नहीं करनी हैयदि यह कहो कि कष्ट देने से विचारों में कुछ परिवर्तन होगा तो भूल है। स्वास्थ्य में अवनति ही दिखाई दी। उस कोठरी में उन्हें दिन को कार्य करना पड़ता है। वे किसी से बात नहीं कर सकते और न अन्य कोई उनसे बात कर सकता है। दोपहर के दो घण्टे का समय खाने आदि के लिए मिलता है। रात्रि को उस कमरे में एक दूसरा कैदी रहता है। जो गर्मी या इसी किस्म की बिमारी का मरीज है। चतुर्वेदी जी ने यह भी कहा कि उसी कमरे में वह कैदी एक कोने में एक बर्तन में पेशाब करता है। और वह सुबह उठा लिया जाता है तथा इसी कमरे में चतुर्वेदी जी को भोजन करना पड़ता है। हम लोगों ने सुपरिण्टेण्डेण्ट जेल से इस पर आपत्ति की कि यह बहुत ही अनुचित है कि छोटी कोठरी में वह पेशाब करे और इसी कमरे में इन्हें भोजन करना पड़े। सुपरिण्टेण्डेण्ट जेल ने कहा कि कोई ऐसा मरीज नहीं रहता। यदि कोई ऐसा होता तो अस्पताल में रखा जाता। यदि ऐसा हो कि जिसे ऐसा मर्ज कभी रहा हो और वह अच्छा हो गया हो तो वह उन्हें मालूम नहीं और पेशाब का बर्तन तो सवेरे ही उठा लिया जाता है और कोठरी झाड़ कर साफ की जाती है तो फिर क्या एतराज हो सकता है? हम लोगों को यह सुनकर जरा आश्चर्य हुआ। कदाचित् नीचे कैदियों की देख-रेख करते रहने के कारण उनके सभ्य विचारों में कुछ फर्क आ गया हो क्योंकि हमें जब याद आने पर ही ग्लानि होती है तो उन्हें (चतुर्वेदी जी को) क्यों न ग्लानि होती होगी? सुपरिण्टेण्डेण्ट जेल ने कहा कि आप जहां खाना पकाते हैं, वहां क्यों नहीं भोजन करते? उत्तर मिला कि जेलर साहब की आज्ञा हुई थी कि यह नियमानुकूल नहीं था। सुपरिण्टेण्डेण्ट जेल ने जेलर को आज्ञा दी कि भोजन अस्पताल में करने दिया करो। उस कोठरी में पत्थर की गिट्टी के ऊपर चूने की पिसाई और उसी पर मिट्टी की लिपाई हुई थी। तख्ती देखने से मालूम हुआ कि उन्हें पहले ६ छटांक रस्सी बांटनी पड़ती थी। चतुर्वेदी जी के कथनानुसार ८ घण्टे खड़े-खड़े काम करने से उनका स्वास्थ्य खराब हुआ और वजन कम होने लगा। सुपरिण्टेण्डेण्ट जेल के अनुसार मलेरिया के कारण स्वास्थ्य खराब हुआ और उसके लिए वे अस्पताल में रखे गये थे। अब बिमारी से उठने के बाद उन्हें केवल ४ छटांक रस्सी बांटनी होती है। कमरे में जोर से पानी आने पर सामने की ओर से बौछार भी आ जाती है और ऊपर के रोशनदान से आती होगी। 'कर्मवीर' में निकले हुए लेख के पहले वे जिस कोठरी में थे वहां से अब दूसरी कोठरी में रखे गये हैं। पहले वाली में अब पागल रहता है। रात्रि को मच्छरों के कारण उन्हें नींद नहीं आती। एक तो वैसे ही डिस्पेप्सिया के कारण नींद नहीं आती, दूसरे मच्छर, फिर क्या कहना है। मच्छरों से बचने के लिए यदि ओढ़ना चाहे तो कम्बल का ओढ़ना बिलासपुर की गर्मी में असह्य हैसुपरिण्टेण्डेण्ट जेल ने चतुर्वेदी जी को उपरना या पतला कपड़ा ओढ़ने के लिए देने में असमर्थता प्रकट की। कान में दर्द के कारण एक दिन कार्य बन्द करने की आज्ञा मिली थी, फिर दूसरे ही दिन आज्ञा मिली कि काम यदि न करेंगे तो करेक्टर (चाल चलन) खराब लिखा जायेगा। इसलिए यद्यपि दर्द था तो भी काम कर रहे थे। कान पर पट्टी बंधी हुई थी |


      यह भी मालूम हुआ कि उन्हें कोई समाचार पत्र या मासिक पत्र पढ़ने को नहीं दिये जाते। सुपरिण्टेण्डेण्ट जेल ने पत्रादिक देने की आशा दिलाई है और अब सुना है दिये भी जाने लगे हैं। चतुर्वेदी जी का कथन था कि यदि कर्मवीर के पब्लिशर का डिक्लेरेशन उन्हीं के नाम से हो तो कर्मवीर की एक प्रति उनके पास भेजनी चाहिए।


      उन्होंने पांडे जी से अपने कष्ट निवारणार्थ प्रान्तीय सरकार से किसी प्रकार की भी याचना न करने का आग्रह किया है।" 


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