श्रीयुत लाला गोवर्द्धनदास

श्रीयुत लाला गोवर्द्धनदास


       "लाला गोवर्द्धनदास लाहौर में किसी बैंक के मैनेजर थे और चुपचाप देश के राजनीतिक कार्यों में भाग लेते रहे। पंजाब में जब मार्शल-ला जारी हुआ तब निरीह भारतीयों पर गोली चलाकर बुरी तरह से मारा जाने लगा। सरे बाजार प्रतिष्ठित पुरुषों को नंगे करके कोड़े लगने लगे तथा तरह-तरह के अत्याचार किये गये। तब लाला गोवर्द्धनदास भी चुप न रह सके। उन्होंने सोचा कि जो कुछ अत्याचार यहां पर हो रहे हैं, अभी उनकी ठीक खबर पंजाब से बाहर नहीं जा सकती। चुपचाप पंजाब को रसातल में भेजा जा रहा है। उसके लीडर पकड़े जा रहे हैं। ऐसी दशा में यह कठिन काम था कि कोई आदमी पंजाब में रह कर सर ओ डायर के अत्याचारों के सामने शिर उठाकर कुछ कह सकता। उसी हालत में लाला गोवर्द्धनदास ने अपना सब काम काज छोड़कर दिल्ली, कराची, बम्बई और मद्रास में जोरदार भाषण दे कर सर ओ डायर का भाण्डा फोड़ा और बाम्बे क्रानिकल में ओ डायर के उन अत्याचारों का वर्णन करके देश की आखें खोलीं, जो सर ओ डायर शान्ति का नाम लेकर पंजाब पर कर रहा था। देश भर में हलचल मच गई। पंजाब सरकार की भी निद्रा टूटी और उसने मद्रास से लाला गोवर्द्धनदास को गिरफ्तार कर मंगवाया। वहीं से यह कहानी आरम्भ होती है जो देशभक्त गोवर्द्धनदास जी ने लिखी है। मार्शल-ला के दिनों में लाला गोवर्द्धनदास जी ने जो निर्भीकतापूर्ण कार्य किया है उसके लिए समस्त देश उनकी प्रशंसा करता है |


(आत्मकथा) 


      मुझे १२ मई सन् १९१९ को मद्रास में गिरफ्तार किया गया और विशेष पहरे में लाहौर लाया गया। लाहौर में पहले मुझे मि० बोरंग पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट के सामने पेश किया गया। मि० काक्स डिप्टी इंस्पेक्टर पुलिस भी वहाँ पर मौजूद थे। पास में सर उमरहयात खां टिवाना भी कुरसी नशीन थे। दोनों पुलिस अफसरों ने कहा कि तुमने पंजाब गवर्नमेंण्ट का मुंह काला कर दिया है और तुम ही समस्त भारतवासियों को अधिकारियों का विरोधी बनाने वाले हो। इस पर उमरहयात ख़ां भी चुप न रह सके और आपने कहा कि आज अगर मुसलमानों का राज होता तो ज़मीन में गड़वाकर इसका बदला लिया जाता।


जेल की तंग कोठरी में


      मुझे २१ मई सन् १९१९ को लाहौर की सेण्ट्रल जेल की एक एकान्त और अन्धकारमय कोठरी में बन्द कर दिया गया। अफसर मुझे एक भयंकर खूखार आदमी समझते थे, इसलिए मैं एकान्तवास में रखा गया था। सुबह और शाम को केवल १० मिनट मुझे बाहर निकलने की आज्ञा मिलती थी।


नजरबन्दी और कैदी


      ६ जून को मुझ पर मुकदमा चलाने का फ़ैसला किया गया, परन्तु तुरन्त ही इसके बाद मुकदमा वापस ले लिया गयाफिर साथ ही भारत रक्षा कानून के अनुसार मुझे नजरबन्द कर दिया गया। एक मास तक मैं नजरबन्द रहा। ५ जुलाई १९१९ को बाम्बे क्रानिकल में मेरा एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसके आधार पर मुझ पर मुकदमा चलाया गयामुझ से पैरवी करने को कहा गया किन्तु उस अन्याय के युग में मैंने सत्याग्रह करना उचित समझा और बिल्कुल पैरवी नहीं की। परिणाम यह हुआ जो हर हालत में होना था कि मुझे ३ वर्ष का सपरिश्रम कारावास और एक हजार जुर्माना की सजा दी गयी।


खास कैद


      एंग्लो इण्डियन समाचार पत्रों के लेखों के अनुसार मुझे उन ३७ कैदियों में रखा गया जिनके साथ खास वर्ताव की दुहाई दी जाती थी। हम लोगों को बहुत बुरी रोटी और गन्दी दाल दी जाती थी। सुबह को बड़ा खराब घी और शाम को तैल मिलता था। सप्ताह में एक बार खराब मांस या हलुआ।


पांच सौ कैदी


      मार्शल ला के शिकार और पांच सौ कैदी बहुत बुरी हालत में थेउनसे गर्मी के मौसम में आठ घण्टे कुलियों से भी कड़ा काम लिया जाता था। उनमें कितने ही प्रतिष्ठित और शिक्षित भी थे। उनको खाना-पीना इतना बुरा मिलता था कि उसको लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं। इससे बढ़कर उन कैदियों के साथ बहुत बुरा सलूक हुआ जो लोहे के ५ फुट लम्बे और ३ फुट चौड़े पिंजरों में गर्मी के दिनों में बन्द किये गये थे। उधर धूप कड़ाकेदार पड़ती थी और वे खड़े भी नहीं हो सकते थे। गुंजरावाला के रईस-ए-आजम-दीवान मंगलसेन, मि० फतेहसिंह बी०ए० तथा मि० सर्वदयाल बैरिस्टर को भी इन ही पिंजरों में बन्द किया गया था। १२ और १४ वर्ष के लड़कों के चूतरों पर केवल लंगोटी मात्र बंधी रहने देकर बरी तरह बेंतें लगायी जाती थीं।


       साधारणतया कैदियों को गर्मी में पांच बजे और सर्दी में ७ बजे उठाकर १५ मिनट में शौचादि से निवृत्त होने दिया जाता था। स्नान करने की कोई सुविधा नहीं थी। कभी कभी तो पीने का भी पर्याप्त पानी नहीं मिलता था। कई बार मैंने अपनी आखों से प्यास के मारे कैदियों को बेहोश पड़े देखा है।


       कैदियों को बैरकों में जो चारों ओर से खुली रहती हैं सोना पड़ता है। पंजाब में यद्यपि सर्दी बहुत सख्त पड़ती है पर इनके पास केवल तीन कम्बल होते हैं, जो खालिस ऊनी नहीं होते। हस्पताल की भी खराब हालत है, वहां बीमार होकर भी प्रायः कैदी जाना पसन्द नहीं करते। क्याकि वहा पर कोई परवाह नहीं की जाती। बीमारों को जो दूध मिलता है उसमें ७० फीसदी पानी होता हैजेलखानों की हालत सुधारने और उनको 'रिफ़ारमेंटरी' ढंग से बनाने की जरूरत है।"


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