शीक्षा पद की सार्थकता


शीक्षा पद की सार्थकता


      अब प्रश्न यह है कि शीक्षा पद में हम किस ईक्षण की अपेक्षा रखें? तो हमारा इस पर यही निवेदन है कि शिष्टानां ईक्षा शीक्षा-शिष्ट आचार्यों की ईक्षा ही सच्ची शीक्षा है, सच्चा दर्शन है। अन्तेवासी का कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने चक्षुओं से न देखकर शिष्ट जनों की चक्षुओं से देखे। उसी तैत्तिरीयोपनिषद् की शिक्षावल्ली में कहा है कि ये के च अस्मत् श्रेयांसः ब्राह्मणाः तेषां त्वयासनेन प्रश्वसितव्यम्  जो  कोई भी हममें से श्रेयस्कर ब्राह्मण हों उनकी शरण में उपस्थित हो समाधान प्राप्त करना। अथ यदि ते कर्मविचिकित्सा वा वृत्तविचिकित्सा वा स्यात् ये तत्र ब्राह्मणाः सम्मर्षिणः युक्ता अयुक्ता अलूक्षाः धर्मकामाः स्युः यथा ते तेषु वर्तेरन् तथा तेषु वर्तेथा:'- यदि किसी कार्य में सन्देह हो जाए और यह समझना पड़े कि क्या वृत्ति है और क्या वृत्त है तो तुम्हारे पास जो सम्मर्षि विद्वान् हों, जो युक्त-अयुक्त, सरल-स्वभाववाले वेदज्ञ ब्राह्मण हों, वे जैसा आचरण करें वैसा तुम भी करना, यही आदेश है, यही उपदेश है, यही उपनिषद् है, यही हमारा अनुशासन है।


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