शरीर को बलवान बनाओ


शरीर को बलवान बनाओ


       रोगी शरीर का स्वामी मनुष्यतत्व से पतित हो जाता है, क्योंकि उसमें मनुष्य-धर्म को पूर्ण करने की सामर्थ्य नहीं होती। अपने शरीर तथा इन्द्रियों को इस प्रकार से रखो कि वे सदा स्वस्थ और बलवान रहेंखान-पान ऐसा सात्विक हो, जिससे शरीर की शक्ति बढ़ती ही रहे और वैदिक स्वर्ग के सदस्य इस वैदिक आदर्श को दूसरों के सामने नि:सकोच भाव से रख सकें-


वाङ्म आसन नसोः प्राणश्चक्षुरक्ष्णोः श्रोत्रकर्णयोः


अपलिताः केशा अशोणा दन्ता बहु वाह्वोर्बलम्॥१॥


ऊर्वो रोजो - जङ्घयोजर्वः पादयोः


प्रतिष्ठा अरिष्टानि मे सर्वात्मानिभृष्ट॥२॥


-अथर्व०९।६०।१-२


      'मेरे मुख में वाणी है (मुझ में अपने मन के भाव प्रकट करने की शक्ति है, सत्य कहने में भय नहीं है।)


      मेरी नसो में प्राण हैं(में जीता जागता हूँ और जीवन के लक्षण दिखा सकता हूँ)


      मेरे नेत्रों में दृष्टि है और कानों मे श्रुति है (मैं यथार्थ ही देखता और यथार्थ ही सुनाता हूँ।)


      मेरे बाल श्वेत नहीं, मेरे दाँत लाल नहीं और मेरी भुजाओं में बड़ा बल है।


      मेरी रानों में शक्ति है और मेरी जाँघों में वेग है। मेरे दोनों पाँवों में दृढ़ खड़ा होने की शक्ति है (मैं इस जीवन संग्राम में अपने पाँवों पर आप खड़ा होने के योग्य हूँ।)


      मेरे सारे अंग पूर्ण और नीरोग हैं। मेरी आत्मा परिपक्व है (बलवान् और तेजस्वी है।)


      इस पवित्र वेद मन्त्र के अनुसार हमारा एक-एक अंग बलवान होजो उष:काल से पूर्व उठकर शौच जाता है, व्यायाम, भ्रमण या योग के आसन करता है, जिह्वा के स्वाद के आधीन न होकर सात्विक पोषण अन्न, दूध, फल खाता है और इन्द्रियों को वश में रखता है, निस्सन्देह वह अपना शरीर इस वेदमन्त्र के अनुकूल बना लेता है। सुस्वास्थ्य वैदिक स्वर्ग का अनिवार्य अंग है आयुर्वेद के शास्त्र चरक संहिता में यह आदेश है-


धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्त्मम्।


      धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन सबका उत्तम मूल आरोग्य है |


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