शराब और जुआ


 


शराब और जुआ


   शराब-


        कालीदास से-एक गणिका सिर पर शराब का करवा रख कर चल रही थी। उससे किसी ने पूछा कि तुम इस करवे में क्या लिये जा रही हो ? गणिका उत्तर देती है-


मदः प्रमादः कलहश्च निद्रा बुद्धिर्भयो धर्मविपर्ययश्च।


सुखस्य केन्था दुखस्य पन्था अष्टौ अनर्था वसन्ति इह कर्के॥


       अर्थ-इस सुरा पात्र में नशा, आलस्य लड़ाई झगड़ा, नींद, बुद्धि का नाशअधर्माचरण, सुख के चीथड़े और दुःख का मार्ग-ये आठ अनर्थ हैं।


न स स्वो दक्षो वरुण धुतिः।


                      सा सुरा मन्युर्विभीदको अचित्तिः॥ (ऋग्वेद ७-८६-६)


       अर्थ-मनुष्य का केवल अपना मन ही उसे पथ भ्रष्ट नहीं करता। अपितु सुरापान करने (शराब पीने), क्रोध करने, जुआ खेलने तथा असावधान रहने से भी मनुष्य पाप के गढ्ढे में गिर जाता है।


      वैदिक सोमरस शराब नहीं था।


ओषधिः सोमः सनोतेः यदेनमभिषुणवन्ति। (निरुक्त ११-२-२) 


       अर्थ-सोम एक औषधि होती है। सोम शब्द निचोड़ने अर्थवाली षुञ् धातु से बनता है। औषधि को सोम इस कारण से कहते हैं कि क्योंकि उस औषधि को कूट, पीस कर, निचोड़कर रस निकाला जाता है।


       यह रस बहुत स्वादु, मधुर और तीव्र होता है। इसके पीने से मन, मस्तिष्क और शरीर में वीरता का संचार हो जाता है।


       शराब, मांस, अफीम, तम्बाकू, भांग, चरस आदि जितने भी नशे वाले पदार्थ हैं, वे सब शरीर और बुद्धि का नाश करने वाले हैं। अतः उनका निषेध है। नशे वाले पदार्थों के प्रयोग से अपराध वृत्ति बढ़ती है। अपराध वृत्ति बढ़ने से अपराध बढ़ते हैंइसलिये भी सभी नशे वाले पदार्थों के प्रयोग की वैदिक साहित्य में मनाही है।


     जुआ-


           जाया तप्यते कितवस्य हीना। (ऋग्वेद)


     अर्थ-जुएबाज की स्त्री दीन हीन होकर दुःख पाती रहती है।


द्वेष्टि श्वश्रूरप जाया रुणद्धि न नाथितो विन्दते मर्डितारम्। (ऋग्वेद)


     अर्थ-जुआरी की सास उसकी निन्दा करती है। स्त्री रोकती है। और वह जुआरी याचना करने पर भी किसी सहायक को नहीं पाता।


अक्षर्मा दीव्यः। (ऋग्वेद) जुआ मत खेल। 


       ऋग्वेद में एक पूरा सूक्त (१०/३४) जुए की बुराईयां बताने के लिए है। उसके नवम मन्त्र में जुए के पासों को अंगारों के समान बताया गया है जो ऊपर से ठण्डे दीखने पर भी हृदय को जलाने वाले होते हैं।


प्रकाशम् एतत् तास्कर्यम् यद् देवनसमाह्वयौ।


               तयोः नित्यं प्रतिघाते नृपतिः यत्नवान् भवेत्॥ (मनुस्मृति)


       अर्थ-ये जो जुआ (जड़ वस्तुओं से बाजी लगाकर खेलने वाला) और चेतन प्राणियों को दाव पर लगाकर खेलने वाला समाह्वय हैं, ये सामने होने वाली चोरी हैंराजा इनको समाप्त करने के लिए सदा प्रयत्नशील रहे।


द्यूतमेतत् पुराकल्पे दृष्टं वैरकरं महत्।


                तस्मात् धृतं न सेवेत हास्यार्थम् अपि बुद्धिमान्॥ (मनुस्मृति)


        अर्थ-यह जुआ अब से पहले कल्प में महान् शत्रुता पैदा करने वाला देखा गया है। इसलिये बुद्धिमान् मनुष्य हंसी मजाक में भी जुआ न खेले | 


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