शहीद खुशीराम

शहीद खुशीराम


(क्रान्तिकारी भगतसिंह द्वारा लिखित)


      “१९१९ का वर्ष भी हिन्दुस्तान के इतिहास में हमेशा याद रहेगा। ताजी-ताजी लड़ाई खत्म हुई थी। हिन्दुस्तानियों और विशेषतः पंजाबियों ने प्राणों पर खेलकर अंग्रेजों को जीत हासिल करवाई थी, लेकिन अहंकारी अंग्रेजों ने अहसान का खूब बदला चुकाया। रोलट-एक्ट पास कर दिया। तूफान मच गयापंजाब में खास तौर पर जोश बढ़ गयापंजाब में तो अभी पिछले युद्ध की याद ताजा थी,उन्हें रोलट-एक्ट देखकर हद दर्जे की हैरानी हुई। हड़तालें,जुलूस व मीटिंग होने लगी। जोश बहुत बढ़ा। नौबत जलियांवाला और मार्शल लॉ तक आ गयी |


      लोग डर गये। कौन कह सकता था कि निहत्थों पर भी गोली चलायी जा सकती है। आम लोगों ने गिरते-पड़ते पीठ में ही गोलियां खायीं। लेकिन उनमें भी श्री खुशीराम जी शहीद ने छाती पर गोलियां खा-कर कदम आगे बढ़ाया और बहादुरी की लाजवाब मिसाल कायम कर दी।


      आपका जन्म २७ सावन, संवत् १९५७ में गांव सैदपुर, जिला झेलम में लाला भगवानदास के घर हुआ था। इनकी जाति अरोड़ा थी। पैदा होने पर आपकी जन्म-पत्री बनाई गयी और बताया गया कि वह बालक बड़ा बहादुर और तगड़ा होगा और इसका नाम भी खूब प्रसिद्ध होगाइसलिए उस समय आपका नाम श्री भीमसेन रखा गया, लेकिन बाद में खुशीराम के नाम से ही प्रसिद्ध हुए। आप अभी बहुत छोटे ही थे, जब आपके पिता का देहान्त हो गया। आपका खानदान बहुत गरीब था और आपका पालन-पोषण लाहौर नवांकोट अनाथालय में हुआ था। वहीं पहले-पहल आपकी शिक्षा शुरू हुई। वक्त गुजरता चला गया। आप फिर डी० ए० वी० कालिज, लाहौर में पढ़ने लगे। १९१९ में १० की आय में आपने पंजाब विश्वविद्यालय से शास्त्री की परीक्षा दी थी और छुट्टियां बिताने जम्मू चले गये।


      सुना कि तीस मार्च के बाद महात्मा गांधी जी ने आदेश दिया कि ३ अप्रैल को देश-भर में हड़ताल की जाये और जलसे-जुलूस निकाले जायें। आप भी लाहौर पहुंचेआकर पूरी तरह काम को सफल बनाने का प्रयत्न करने लगे। कालेजों के लड़कों ने नंगे सिर बड़े-बड़े जुलस 'हाय-हाय रोलट-एक्ट' कहते हुए निकाले थेयह सब आपके यत्नों का फल था। दो चार दिन बड़ी रौनक रही१२ अप्रैल को बादशाही मस्जिद, लाहौर में जलसा हुआभीड़ का कोई शुमार न था। हजारों आदमी थे। गर्मागर्म भाषण हुएधुआंधार भाषणों के बाद जुलूस बनाकर लोग शहर को चल पड़े। हीरामण्डी जब पहुंचे और शहर में घुसने लगे, उसी समय नवाब मुहम्मद अली सेना के साथ आगे तैनात था। उसने हुक्म दिया कि जुलूस को भंग कर दो। लेकिन वे दिन बड़े अजीब थेखुशीराम आगे-आगे झण्डा उठाये जा रहे थे। कहा, "यह जुलूस कभी वापस नहीं लिया जा सकता और जुलूस की शक्ल में ही शहर में घुसेगा।" नवाब ने हवा में गोली चला दी। लोग भाग छूटे। शेरमर्द लाला खुशीराम ने गरज की, एक बार तो लोगों को खूब लानत दी। कहा, “तुम्हें शर्म नहीं आती, इस तरह गीदड़ों की तरह भागते हो।" लोग एकत्र हो गये। लाला खुशीराम आगे जा रहे थे। नवाब ने फिर गोलियां चलाई। इस बार गोली हवा में नहीं, बल्कि सीधे महाशय खुशीराम की छाती में लगी। गोली लगी तो आप जख्मी शेर की तरह झपटकर आगे बढ़े। और गोली लगी तो आप और आगे बढ़े। एक-एक कर सात गोलियां छाती में लगी लेकिन खुशीराम का कदम आगे ही बढ़ता चला गया। आखिर आठवीं गोली माथे के दायीं ओर और नवीं गोली बायीं ओर आ लगी। शेर तड़फकर गिर पड़ा। खुशीराम सदा की नींद सो गये, लेकिन आज उनका नाम जिन्दा है। उनकी बहादुरी व हिम्मत आज भी उसी तरह ताजा है। आपकी लाश का बड़ा भारी जुलूस निकला। आम ख्याल किया जाता है कि कम से कम पचास हजार लोग इस जुलूस में शामिल थे।


      इस तरह उस वीर ने अपने और अपने राष्ट्र के गौरव के लिए प्राणों की बाजी लगा दी। और अपना नाम अमर कर गया। कुछ वर्षो बाद एक कवि ने एक बड़ी दर्द भरी कविता लिखी थी।" ('विद्रोही' नाम से अक्तूबर, १९२८, 'किरती' में) 


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